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રૂહ
दोनों सुन्दरियों के चरणयुगल को स्थलकमल की उपमा से सजाया गया प्रभावती के वर्णन में
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पदारविन्दे नखकेसरद्युती स्थलारविन्द श्रियमूहतुर्भृशम् ।
विसारिमृद्वगुलिसच्छदेऽरुणे ध्रुवं तदीये जितपल्लवश्रिणी ।। ५, ९ ।। पार्वती के वर्णन में
अभ्युन्नताङ्गुष्ठनखप्रभाभिर्निक्षेपणाद्रागमिवोद्गिरन्तौ ।
आजहतुस्तच्चरणौ पृथिव्यां स्थलारविन्द श्रियमव्यवस्थाम् ।। १ ३३ ॥ दोनों की भौहों की तुलना कामदेव के धनुष से की गई है । प्रभावती के वर्णन में
भ्रुवौ तदीये किल मुख्यकार्मुकं स्मरस्य पुष्पास्त्रमिहौपचारिकम् । मुखाम्बुजेऽस्या भ्रमरभ्रमायितं घनाञ्जनाभैर्भ्रमरालकै रलम् ||५, ३३ ।। पार्वती के वर्णन में
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तस्याः शलाकाञ्जननिर्मितेब कान्तिभ्रुवोरायत लेखयोर्या ।
af वीक्ष्य लीलाचतुरामनङ्गः स्वचापसौन्दर्यमदं मुमोच ।। १,४७ ॥
यहाँ पार्वती की भौहों का सौन्दर्य कामदेव के धनुष की सुन्दरता को भी लाँघ
गया है । फिर भी दोनों स्थानों पर भौहों की उपमा कामदेव के धनुष से ही की गई है ।
प्रभावती एवं पार्वती दोनों का कटिप्रदेश इतना सुन्दर है कि दोनों के पेट पर तीन लकीरें पड़ती हैं और उन लकीरों (वलित्रय) की तुलना दोनों कवि कुछ भिन्न कल्पना के साथ यूँ करते हैं ।
प्रभावती के वर्णन में
तदीयमध्यं नतनाभिसुन्दर बभार भूर्षा सबलित्रयं पराम् ।
प्रक्लृप्त सोपानमिदं विनिर्ममे स्वमज्जनायेव सुतीर्थमात्मभूः ।। ५, १७ ।। पार्वती के वर्णन में—
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मध्येन सा वेदविलग्नमध्या बलित्रयं चारु बभार बाला । आरोहणार्थं नवयौवनेन कामस्य सोपानमिव प्रयुक्तम् ॥
१, ३९ ॥
यहाँ प्रभावती के वर्णन में कवि पद्मसुन्दर कहते हैं, पेट पर की वे तीन लकीरें ऐसी थीं मानो कामदेव ने अपने स्नान के लिए सीढ़ियों से युक्त सुन्दर तीर्थ का निर्माण किया हो । और पार्वती के वर्णन में कवि कालिदास कहते हैं कि मानो कामदेव को स्तनादि ऊपर के अंगों तक चढ़ाने के लिए यौवन ने सीढ़ियों का निर्माण किया हो । पर दोनों ही कवियों ने वलित्रय के साथ कामदेव की कल्पना को अवश्य साकार किया है ।
दोनों सुन्दरियों के होठों की कल्पना में भी कवियों की सूझ प्रायः समान अथवा समीप ही है ।
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