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है तथा प्रभावती के सौन्दर्य चित्र को दर्शाते समय हमने मुख्यतः कालिदास की पार्वती के सौन्दर्य से उसका साम्य दिखालाने की चेष्टा की है ।
वसुन्धरा :
कवि वसुन्धरा के शरीरसौष्ठव का चित्रण उपमा अलकार के सहारे करता हुआ कहता है कि उसकी दृष्टि वायु के द्वारा हिलाये गये नीलकमल की भांति चञ्चल थी, उसका मुख चन्द्रमंडल के समान सुन्दर था, उसकी बाहे लता के समान कोमल थीं, उसकी जांघे केले के तने के समान चिकनी थीं, उसके बाल सघन, काजल के समान काले और चिकने थे। तत्पश्चात् व्यतिरेक ध्वनि का उपयोग करता हुआ कवि कहता है कि उस कमनीया ने अपने हाथ और पैर के नखों की कान्ति से अशोक पल्लव की शोभा को भी परास्त कर दिया था अर्थात् उस मुग्धा के हाथ और पैर के नाखुन अत्यन्त लाल थे । कवि द्वारा किए गए वसुन्धरा के सौन्दर्य वर्णन पर दृष्टिपात करने से हमें ज्ञात होता है कि कलिदास और पदमसुन्दर दोनों ने ही अपनी सुन्दरियों की दृष्टि को वायु के द्वारा हिलाये गये नीलकमल के समान चञ्चल बताया है। पार्वती और वसुन्धरा दोनों के ही वर्णनों में देखिए - वसुन्धरा के वर्णन में
प्रवातेन्दीवराधीरविप्रेक्षितविलाचनाम् ।।१, १६ ।। पार्वती के वर्णन में--... प्रवातनीलोत्पल निर्विशेषमधीरविप्रेक्षितमायताक्ष्याः ॥ कुमारसंभव, १, ४६ ।। प्रभावती : (प्रभावती व पार्वती का सौन्दर्य वर्णन - एक तुलनात्मक अध्ययन)
कवि ने प्रभावती को अत्यन्त सुन्दर बताया है । प्रभावती चम्पा के समान और सवर्ण की सी कान्तिवाली है। वह कृशदेहयष्टि वाली है और उसके होंठ पके हए बिम्बफल के समान लाल हैं । यहाँ तुलना कीजिए मेघदूत, उत्तरमेघ, पद्य १९, यक्ष की प्रियतमा के सौन्दर्यवर्णन से .....
" तन्वी श्यामा शिखरिदशना पक्वबिम्बाधरोष्ठी " ..... आदि । प्रभावती का सौन्दर्य कुमारसम्भव के प्रथम सर्ग में वर्णित पार्वती के सौन्दर्य से अत्यधिक साम्य रखता हुआ है। देखिए - प्रभावती और पार्वती दोनों ही चान्द्रीकला की भांति बढ़ती हैं । प्रभावती के वर्णन पद्मसुन्दर लिखते हैं
सुरूपलावण्यविभाविभूतिभिः प्रवद्ध'माना किल सैन्दवी कला ।
दिने दिने लब्धमहोदया बभौ जगज्जनाहूलादविधायिनी कनी ॥ ५, ४ ।। पार्वती के वर्णन में कालिदास कहते हैं :
दिने दिने सा परिवर्धमाना लब्धोदया चान्द्रमसीव लेखा । पपोष लावण्यमयान्विशेषाज्योत्स्नान्तराणीव कलान्तराणि ॥ १. २५ ।।
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