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पोतनपुर नगर वर्णन :
इस नगर का वर्णन भी कवि ने प्रथम सर्ग के कुल तीन ही श्लोकों में किया है । यह नगर बन, पर्वत और नदियों से आच्छादित, भारतवर्ष के सभी नगरों से अधिक समृद्ध व शोभा से युक्त, अत्यन्त वैभवपूर्ण नगर था ।
सोपा द्वारा कवि कहता है कि इस नगर की हवेलियां मणिजड़ित फर्श से युक्त, आकाश को ल सकने की सामथ्य वाले ऊचे-ऊँचे शिखरों एवं श्वेत चमकीले स्फटिक की संशोभित, अपनी किरणों से मानों देवों के विमानों की भी हँसी उड़ा रही हो. एसी थौं । देखिए
हाणि यत्र मणिकुट्रिटममञ्जुलानि, व्योमाग्रचुम्बि शिखराणि मरुद्गणानाम् । स्वैरं शुभिः किल हसन्ति विमानन्दं, शुभ्रस्फुटस्फटिकभित्तिविराजितानि ॥ १, ५ ॥
कार से प्रायः सभी कवियों ने अपने काव्यों में नगर की हवेलियों का वर्णन किया है। नैषध के द्वितीय सर्ग के ७४ वें श्लोक में 'स्फटिकोपलविग्रहो गृहाः" बता कर भबन का वर्णन किया गया प्राप्त होता है। पातनपुर के निवासियों का वर्णन :
उस नगर में बड़े-बड़े सेठ लोग दूसरों के ही गुणों का गान करते थे, अपने गुणों को प्रगट नहीं करते थे । वे पराक्रमी होने पर भी शान्तिप्रिय थे, दानवीर थे, न्यायप्रिय थे, धर्मात्मा थे, विचारशालीनता में दक्ष थे तथा धनाढ्य थे ।
यहां नागरिकों के परम्परागत गुणों का वर्णन किया गया है । भट्ट भीम द्वारा रचित "रावणार्जनीय" काव्य के माहिष्मती नगरी वर्णन, सर्ग ८ में भी इस प्रकार का नागरिक वर्गन प्राप्त होता है । शुभकरा नगरी वर्णन :
इस नगरी का वर्णन प्रथम सर्ग के ६८वे श्लोक में किया गया है । शुभंकरा नगरी विभिन्न प्रकार के वृक्ष, नदी, तालाब व उद्यान आदि से शोभित प्रान्त बाली तथा प्राकार । परकोटा ), वलय, परिखा एवं गोपुरों से शोभित भाग वाली थी । देखिए...' सा नानाद्रुमतटिनी कूपाऽऽरामैविराजितोपान्ता ।
प्राकार-क्लय-परिखा-गोपुरपस्मिण्डितविभागा ॥ १. ६८ ॥ कवि पद्मसुन्दर ने नगर वर्णन में महाकाव्य के प्राचीन समय से चले आ रहे परगत वर्ण्य विषय को लिया है । प्रायः सभी उपलब्ध काव्यों में सुधा के समान श्वेत जन गगनचुम्बी भवनों की उन्नत पताकाएँ, नगरी में वाद्य व संगीत की ध्वनि का मखरित ना. वातायनों से निकलने वाले धूप-दीप के धुएँ से नगर का सुवासित रहना, गलियों
राजमार्गों का पुष्पों के अलंकरण से सजा रहना, घर के द्वारों पर तोरण का धा
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