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उस नगरी में गंगा नदी की तरंगे व्यक्तियों को नहला कर उन्हें सभी प्रकार के पापों से मुक्त रखती थीं और उनके स्वर्ग के मार्ग के लिए पुण्यों के ढेर के समान थीं । उस नगरी में राजा का शासन भी अति सुशासित था । योग्य व्यक्तियों को ही धन दिया जाता था । मनुष्यों के चित्त धर्म के अधीन थे । धर्म शास्त्र के अधीन था एवं नीतिमार्ग राजा के अधीन था ।
तत्पुराण नगर वर्णन :
इस नगर का वर्णन अत्यन्त संक्षिप्त रूप में, द्वितीय सर्ग के मात्र तीन ही श्लोकों में किया गया है । पर ये तीनों ही श्लोक बहुत सुन्दर हैं । प्रथम दो श्लोकों में कवि नगर वर्णन करता है और तीसरे श्लोक के द्वारा वहाँ की स्त्रियों के सौन्दर्य को दर्शाता है ।
वह नगर स्वर्ग के खण्ड के समान प्राग्विदेह देश के अखण्ड मण्डल में दूसरों की समृद्धि को भेदने वाला तत्पुराण नामक नगर था। उस नगर के भवन चू से धवलत थे और अपनी श्वेत समृद्धि से अमरावती ( इन्द्र की नगरी ) की भी मानो हँसी उड़ा रहे हों, ऐसी प्रतीति कराते थे ।
. इस श्लोक की तुलना हम कालिदास के मेघदूत, पूर्वमेघ के श्लोक ६२ के उत्तरार्ध के साथ कर सकते हैं जहाँ कैलास पर्वत की कुमुद जैसी उजली चोटियाँ आकाश में इस प्रकार फैली बतलाई गई हैं मानो वह दिन-दिन इकट्ठा किया हुआ शिवजी का अट्टहास हो । देखिए
सुधाधवलितैः सौधेर्विशदेहसराशिभिः
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यत्पुरर्द्धिः कृतस्पर्धा हसन्तीवाऽमरावतीम् ॥ २, ४॥
यहाँ कवि पद्मसुंदर ने कवि कालिदास के ही समान हास्य का रंग धवल होता है इस कविसमय का प्रयोग किया है। पद्मसुन्दर ने भवनों की श्वेतता को तत्पुराण नगरी का हास्य कहा है और कालिदास ने कैलास पर्वत की चोटियों की श्वेतता को व्यम्बक का अट्टहास कहा हैं । तत्पुराण की नारियों का सौन्दर्य :
शृङ्गोच्छायैः कुमुदविशदैर्यो वितत्य स्थितः खं ।
राशीभूतः प्रतिदिनमिव त्रयम्बकस्याट्टहास: ।। ६२ ।
उस नगर की नारियों का सौन्दर्य इतना अधिक अनुपम था कि उन्हें आश्चर्यचकित होकर देखने के लिए स्वर्ग की देवांगनाएँ मानो निर्निमेष दृष्टि वाली हो गई हों, ऐसा प्रतीत होता था । कवि के शब्दों में देखिए -
प्र. - ५
नारी सौन्दर्य दृष्ट्वा दिवि सुराङ्गनाः । निर्निमेषदृशस्तस्थुरिव शङ्के सविस्मयाः ॥ २, ३ ॥
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