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राजा अरविन्द ही मरुभूति के जीव को उसके द्वितीय भव से मुक्ति दिलाने, उसे धर्म मार्ग की ओर प्रेरित करने वाले मुख्य हेतु बनते हैं । मरुभूति की कथा का प्रारम्भ भी राजा अरविन्द के राज्य से ही होता है । मरुभूति अपने प्रथम भव में, इस राजा का सुयोग्य मन्त्री था। इस प्रकार राजा अरावन्द के पात्र का इस महाकाव्य में महत्व का स्थान स्थापित होता है।
राजा अश्वसेन :
वाराणसी नगरी का इक्ष्वाकवंशीय राजा अश्वसेन था । वह राजा अश्वसेन इतना प्रतापी था कि उसके प्रताप से परास्त सूर्य उसकी प्रदक्षिणा करता था -
निर्जितो यत्प्रतापेन तपन: परिधिं दधौ ॥ ३, १३ उत्तरार्ध । उसके भय से तीनों लोक कांपते थे । वह राजा एक सुयोग्य शासक था । उसके शासन में सारी पृथ्वी सधवा अर्थात् श्रेष्ठ राजा से युक्त सुशोभित थी -
राजवन्ती धरा सर्वा तस्मिन्नासीत् सुराजनि ॥ ३, १६, पूर्वार्ध । उसके राज्य की कोई भी वस्तु अथवा घटना उस राजा की आँख से छिपी नहीं रहती थी अर्थात् वह राजा अत्यन्त सतर्क व सजग था । वह विवेकी था। वह प्रत्येक कार्य को बहुत अधिक विचार कर तथा प्रजा के हित को देखकर करता था। उस राजा के राज्य में धर्म. अर्थ और काम-इन तीनों गुणों में मित्रता थी अर्थात् वह इन तीनों ही पुरुषार्थो को सेवन करता था । गुगीजनों के प्रति वह चन्द्रमा के समान शान्तस्वभाव वाला तथा दुष्टों के प्रति सर्य के समान उग्रस्वभाव को धारण करने वाला था । वह महादानी था। उसके राज्य में न कोई दुःखी था, ना कोई याचक था, ना कोई खिन्नमना था, ना ही कोई असन्तुष्ट अथवा आनन्दरहित ही था ।
इन्हीं सर्वगुणसम्पन्न अश्वसेन राजा के पुत्र श्रीपार्श्व थे । यह राजा के पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों का ही फल था कि उनके यहाँ, उनकी पत्नी वामादेवी की कोख से पाचतीर्थकर ने जन्म लिया और उनके घर-प्रांगण में भगवान ने संस्कार प्राप्त किये ।।
राजा अश्वसेन अवसर आने पर दूसरे राजाओं को अपनी सेवाएं प्रदान कर सहायता करना जानते थे । उदाहरणस्वरूप राजा प्रसेनजित् का दूत जब राजा अश्वसेन के पास सहायता मांगने आता है तब वह अविलम्ब तत्पर हो जाते हैं ।
इस प्रकार राजा अश्वसेन को हम एक सुयोग्य बुद्धिमान सदगणसम्पन्न व कीर्तिमान शासक के रूप में देखते हैं। राजा प्रसेनजित् :
कुशस्थल नामक नगर के राजा प्रसेनजित् न्यायपूर्वक राज्य का पालन करने वाले राजा के रूप में सुप्रसिद्ध थे । उनकी पुत्री प्रभावती अत्यन्त अद्भुत रूपगुणों से सम्पन्न थी। जिसका विवाह उन्होंने श्रीपार्श्व से किया था ।
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