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दूसरे भव में मरुभूति के हाथी रूप में जन्म लेने पर, उसकी पत्नी हथिनी के रूप में उसे बतलाया गया है, जिसके साथ बह अनेकों प्रकार की केलि-क्रीडाएँ कर आनद मनाती है। कवि का यह वर्णन अजीब सा लगता है। यहाँ कवि का आशय कर्म सिद्धान्त के स्थूल दृष्टांत को प्रस्तुत करने का रहा लगता है । यह भी हो सकता है वरुणा के मन की. मरुभूति के प्रति की कोई आसक्ति दूसरे जन्म में फलित हुई हो ।
रानी प्रभाषती :
रानी प्रभावती अत्यंत सुन्दर हैं (देखिए सर्ग ५ के श्लोक ३ से ३५ तक) । अपने पिता की आज्ञा से वे पार्श्व भगवान् के साथ विवाह करती हैं तथा थोड़े समय तक सुख भोगती हैं। बस इससे अधिक कवि ने कुछ भी ज्ञात नहीं होने दिया । पाश्व' के दीक्षित होकर घर छोड़ने पर उन्होंने खुश होकर अपनी अनुमति दी या उन्हें आधात लगा-आदि कितने प्रश्न पाठक के मन में उठ कर रह जाते हैं जिनका उत्तर कवि ने अपने काव्य में कहीं भी नहीं दिया है । कवि को अपने काव्य को अधिक रसमय बनाने का जो अवसर इस समय प्राप्त हुआ था, उसका उपयोग कवि ने नहीं किया है।
रानी वामा:
रानी वामा राजा अश्वसेन की पत्नी और पाश्व' को जन्म देने वाली सौभाग्यवान् स्त्री हैं। उनकी स्तुति में इन्द्राणी भी इन विशेषणों का उच्चारण करती हैं
सवगीर्वाणपूज्ये ! त्व' महादेवी महेश्वरी ।
रत्नगर्भाऽसि कल्याणि ! वामे ! जय यशस्विनि ! ।।३, १०७ ।। पार्श्व के गर्भ में आने से पूर्व वे शुभ लक्षणों वाले चौदह स्वप्न देखती हैं जिन्हें बड़े ही उत्साह के साथ अपने पति को बताती हैं। तत्पश्चात् ब्राह्मणों द्वारा उन स्वप्नों का अथ तीर्थ कर या चक्रवर्तिं पुत्र की उत्पत्ति सुन अत्यंत मुदित होती हैं।
अपनी गर्भावस्था के समय की कमल के समान अपनी सुन्दरता से अपने पति के मन को प्रसन्न करती हैं। उस अवस्था में अपनी सखियों की कही प्रत्येक बात को आदर के साथ मानती भी हैं।
पाश्व' का नाम भी उन्होंने ही रखा था । वह अपने गर्भ के तेज के कारण महान्धकार में भी अपनी खाट के पास सर्प को देख सकी थीं इसी कारण उन्होंने अपने पुत्र को पार्व कह कर पुकारा ।
अपने पुत्र की सुन्दरता व उसकी शैशवावस्था की भाँति-भाँति की क्रीडाओं को देख कर अपने पति के साथ एक साधारण स्त्री के समान खूब प्रसन्न होती हैं। आदि ।
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