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________________ 'सारस्वत रूपमाला' जिसमें अन्त के श्लोक में मात्र "श्रीपद्मसुन्दरः” ही लिखा है- यह नहीं कहा जा सकता कि यह पद्मसुन्दर कौन हैं ? लेकिन पद्ममेरु के शिष्य पदमसुन्दर ने 'सुन्दरप्रकाशशब्दार्णव' सारस्वत व्याकरण की परिपाटी का अनुसरण करते हए ही लिखा है । अत: यह 'सारस्वत रूपमाला' उनकी ही कृति हो, यह विशेष संभावित है। इसी प्रकार 'हायनसुन्दर' एवं 'सुन्दरप्रकाश' इन दोनों कृतियों की अन्तिम पंक्तियों को देखने से यह मालूम होता है कि दोनों के कर्ता एक ही हैं । कवि 'सुन्दरप्रकाश' में ६५ में श्लोक की अंतिम पंक्ति में लिखते हैं:-“जीयादारविचन्द्रतारकमयं विश्वेषु शब्दार्णवः” । ठीक इसी प्रकार की पदावलि हायनसुन्दर के अन्तिम (१३ में) श्लोक में भी आई है: " ........................ जीयात् । आचन्द्रतारकमसौ श्रीहायनसन्दरो ग्रन्थः " ॥ इसके अतिरिक्त अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर में पद्मसुन्दर की दो कृतियाँ 'परमतव्यवच्छेदस्याद्वादसुन्दरद्वात्रिंशिका,' क्रमांक ९७४६ की तथा राजप्रश्नीयनाट्यपदभजिका' क्रमांक ९९३६ की प्राप्त होती है। श्री अगरचन्द नाहटा 'अनेकान्त' भाग ४, पू० ४७० पर पद्मसुन्दर की जिन अनुल्लिखित कृतियों का उल्लेख करते हैं, वे हैं : ‘षडभाषागर्भितनेमिस्तव,' 'वरमंगलिकास्तोत्र' तथा 'भारतीस्तोत्र' । इनमें से मात्र भारतीस्तोत्र का उल्लेख देव विमलगणि विरचित हीरसौभाग्य महाकाव्य की स्वोपज्ञवृत्ति ( काव्यमाला प्रकाशन -६७, बम्बई, सन् १९००, सर्ग १४, श्लोक ३०२, पू० ७४७ ) में किया गया है -"यथा पद्मसुन्दरकविकृतभारतीस्तवे- 'वार वार' तारतरस्वरनिर्जितग'गातार'गा' इति ।” __ जिन अप्रकाशित कृतियों की प्रतियां हम देख सके हैं, उनका विवरण हम यहाँ प्रस्तुत करते हैं । कृतियों की पुष्पिका में कवि के नाम के आगे पं०, श्री, कवि, मुनि व गणि आदि विशेषण प्राप्त होते हैं । इन अप्रकाशित कृतियों की सूचि इस प्रकार है : (१) सुन्दरप्रकाशशब्दार्णव (२) रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य (३) सारस्वतरूपमाला (४) प्रज्ञापनासूत्र की अवचरि (५) यदुसुन्दर महाकाव्य (६) हायनसुन्दर (७) जम्बूअज्झयण सुन्दरप्रकाशशब्दार्णव यह श्रीकान्तिविजयजी महाराज शास्त्र संग्रह, जैन ज्ञानमन्दिर, छाणी भंडार, न० ४४८ का प्रति है । इस प्रति का परिमाण २७.५४१२.५ से. मी. है । इस प्रत का लेखनसंवत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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