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________________ १९६२ है । इस प्रत के कुल पत्रों की संख्या ७६ है । प्रत्येक पत्र में १४ पक्तियाँ हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ५० अक्षर हैं । यह ग्रन्थ पांच तर गों में विभक्त है। प्रथम तरंग में २६९ श्लोक हैं, द्वितीय तरंग में ९५६ इलोक हैं, तृतीय तरंग ४९६ श्लोक हैं, चतुर्थ तरग में ३२२ श्लोक हैं, पचम तर ग में ७४० श्लोक हैं। इस प्रकार कुल श्लोक की संख्या समस्त ग्रन्थ में २७८३ है । ग्रन्थाग्र ३१७८ है । यह एक कोश ग्रन्थ है । यह व्याकरणसाधनिका सहित शब्दों का कोश है । अत: इसका विषय व्याकरण भी है और कोश भी । यहाँ पद्मसुन्दर सारस्वत सूत्रों का अनुसरण करते हैं । वे खुद इस ग्रंथ को शब्दशास्त्र कहते हैं । आदि- श्रीवाग्देवतायै नमः । श्रीगुरवे नमः । यच्चान्तबहिरात्मशक्तिविलसच्चिद्रूपमुद्राङ्कितं स्यादित्थ न तदित्यपोहविषयज्ञानप्रकशोदितम् । शब्दभ्रान्तितमःप्रकाण्डकदनबध्नेन्दुकोटिप्रभं वन्दे निवृतिमार्गदर्शनपरं सारस्वतं तन्महः ॥१॥ अन्त- यथामति मया प्रोक्तं किञ्चिच्छब्दानुशासनम् । न शब्दजलधे: पार गताविन्द्रावृहस्पती ॥६३ ॥ नानासूत्रपदप्रपञ्चनखराच्छब्दोग्रदंष्ट्राङकुराद्रङ्गद्भङ्गतरङ्गभीष्मवदनात् कृत्तद्धितोत्केसरात् । श्रीमत्सुन्दरकाव्यपञ्चवदनन्निपातलाङ्गलिनो थेऽपभ्रशमृगाः पलायनपरा यास्यन्ति कस्याश्रये ॥६४।। नानाथौ घतरङ्गनिर्गमनिपातावर्तवेगोद्वताs. नेकप्रत्ययनकचक्रविविधादेशोरुकोलाहलः । वाग्देवीगिरिसूतसूत्र निवहस्रोतस्विनीवर्द्धितो जीयादारविचन्द्रतारकमय' विश्वेषु शब्दार्णवः ॥६५॥ मावशासीः कुरालकृतिरैद'युगीनाऽदसीया सूत्राण्याद्यश्रुतपरिचितान्येव सारस्वतानि । तस्मादूरीकुरु बहुमत सादर शब्दशास्त्र शब्दब्रह्मण्यपि निपुणधार्यत्परब्रह्मयायाः ॥६६।। आनन्दोदयपव तैकतरणेरानन्दमैरो रोः शिष्यः पण्डितमौलिमण्डनमणिः श्रीपद्ममेरुगुरुः। तच्छिष्योत्तमपद्मसुन्दरकविः श्रीसुन्दरादिप्रकाशान्तं शास्त्रमरीस्वत(१) सहृदयैः संशोधनीय मुदा ।।६।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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