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________________ पनसुन्दरसूरिविरचित गजानां वृहितैस्तत्र हयहेषारवैर्धशम् । रणातोद्यारत्रैः शब्दाडम्बरो व्यानशेऽम्बरम् ॥१३५।। निर्ययुः कृतसंरम्भाः सुमटा ये रणोद्भटाः। धन्विनः कृतहुङ्काराः सेनयोरुभयोरपि ॥१३६॥ मम वानायुजाः पारसीक-काम्बोज-बाल्हिकाः । हयाः प्रचेलुश्चपला रणाब्धेरिव वोचयः ॥१३७॥ लिलङ्घयिषवः स्वीयैर्गतैरिख नमोऽङ्गणम् । अपावृत्तादिभिर्हेषाघोषा वाहा विरेजिरे ॥१३८॥ चक्रेणैकेन चक्री चेद्वयं चक्रद्वयीभृतः ।। वदन्त इति चीत्कारै रथा जेतुमिवाभ्ययुः ॥१३९।। विपशेभमदामोदमाघ्राय प्रतिघोद्धराः । सिन्धुरा निर्ययुर्योदु जङ्गमा इव भूधराः ॥१४॥ धानुष्का रणनाट्यस्योपक्रमे सूत्रधारवत् ।। निनदत्तूयनिःस्वानं रणरङ्गमवीविशन् ॥१४१॥ रणरङ्गमनुप्राप्य धन्विभिः शितसायकाः । बभुः प्रथमनिर्मुक्ताः कुसुमप्रकरा इव ।।१४२॥ (१३५) वहाँ हाथियों की चिंघाड़ और अश्वों को अतीव हिनहिनाहट से तथा युद्ध के आतोद्य आदि बाजों की ध्वनि के आडम्बर से अम्बर व्याप्त हो गया । (१३६) युद्ध में कुशल, आवेशवाले, धनुर्धारी, हुंकार करते वे वीर दोनों सेनाओं से निकल पड़े । (१३७) वहाँ युद्ध रूपी समुद्र की उत्ताल तरंगों की भाँति वानायुज, पारसीक, काम्बोज व बाल्हीक चञ्चल घोड़े चलने लगे । (१३८) अपनी चाल से मानों आकशमण्डल को भी लाँघने की इच्छा वाले वे हेषारव करते घोड़े अपनी उलट पुलट (उलटी-सीधी) चाल से सुशोभित हो रहे थे । (१३९) तुम एक चक्र से चक्री हो तो हम दो चक्रों को धारण करने वाले हैं-- इस प्रकार जोर से चित्कार करते हुए रथ (दुश्मन को) जीतने के लिए आगे बढ़ने लगे । (१४०) शत्र के हाथियों के मद की गंध को सूंघकर प्रतिस्पर्धी हाथी युद्ध करने के लिए गतिमान पर्वत की भाँति निकल पड़े । (१४१) रणस्थलरूप नाट्य के आरम्भ में सूत्रधार की भांति इस राजा के धनुर्धारी योद्धा तुरही आदि की ध्वनि वाले रणाङ्गणरूप रंगमंडप में प्रविष्ट हो गये । (१४२) रगरूप रंगभवन में प्रवेश करके धनुर्धारियों द्वारा सर्वप्रथम छोड़े हुए तीक्ष्ण बाण (२ गभवन में सूत्राधार के द्वारा) सबसे पहले बरसाये गये (श्वेत) पुष्पों की भांति शोभित हो रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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