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________________ ७२ श्री पार्श्वनाथ चरितमहाकाव्य लघुकृत्यकरा बाणाः प्रगुणा दूरदर्शिनः । क्षिप्रोडोनाः खगाः पेतुः खगास्तीक्ष्णानना इव ॥१४३॥ Jain Education International कश्चित् परेरितान् बाणान् अर्धचन्द्रनिभैः शरैः । चिच्छेद सम्मुखायातॉल्लघुहस्तो धनुर्धरः ॥ १४४॥ धन्विभिः कृतसन्धानाः शरासनमधिष्ठितः । यानं प्राप्ताश्च मध्यस्था द्वैधीभावरतः शराः ॥ १४५ ॥ विग्रहे निरताः शत्रुसंश्रया दूरदर्शिनः । षाड्गुण्यमिव नीतास्ते स्वक्रियासिद्धिमाप्नुवन् ॥ युग्मम् ॥१४६॥ केषाचिद् दृढमुष्टिीनां बाणाः पारङ्गमा इव । लक्ष्यन्ते लक्ष्यमुद्भिद्य गजाश्वरथसैनिकम् ॥ १४७॥ नाराचधारा सम्पातैर्भिन्ना अपि महारथाः । तथाप्यभ्यरि धावन्तश्चिरं युयुधिरे भृशम् ॥ १४८॥ कर्णलग्ना गुणयुताः सपत्नाः शीघ्रगामिनः । दूता इव शरा रेजुः कृतार्थाः परहृद्गताः ॥ १४९ ॥ ( १४३ - १४४) शीघ्र कार्य करने वाले, दूर तक देखने वाले, ऋजु गति वाले, झड़प से उड़ने वाले, आकाश में गमन करने वाले और धारदार मुख वाले बाण शीघ्र कार्यकारी, दूरदर्शी, ऋजु गति वाले, झड़प से उड़ने वाले, आकाशगामी और तीक्ष्ण चोंच वाले पक्षियों की तरह गिरते थे । ( १४५ - १४६) धनुर्धारियों के द्वारा जिन्होंने (डोरी - ज्या के साथ) सन्धि की है; जिन्होंने अपने आसन (धनुप ) पर स्थान जमाया है; जिन्होंने यान (गमन) प्राप्त किया है, जिन्होंने (रण के) मध्य में रहकर द्वैधीभाव प्राप्त किया है; जिन्नोंने विग्रह में (शरीर) में प्रवेश किया है और जिन्होंने शत्रुओं का आश्रय लिया है ऐसे दूरदर्शी बाण मानों षड्गुणवाले बन कर अपनी कार्यमिद्धि को पूर्ण कर रहे थे । युग्मम् । (१४७) दृढ़ मुठ्ठी वाले किन्हीं बहादुरों के बाण, गज, अश्व, रथ, सैनिक आदि लक्ष्य को बेच कर मानो पारगामी हों ऐसे दिखाई देते थे । ( १४८) बाणों की मूसलाधार वर्षा से छिन्नभिन्न महारथी, दुश्मनों के सम्मुख दौड़ते हुए, खूब जोर से बहुत समय तक युद्ध करने लगे । (१४९) कर्णलग्न (कानों तक खींचे हुए), गुणयुक्त ( ज्या से सम्बद्ध), सपत्न ( एक साथ गिरने वाले), शीघ्रगामी, कृतार्थ और परहृदयगत (दुश्मन के हृदय में लगे हुए), बाग कर्णलग्न (कान में बात कहते हुए) गुणयुक्त, सपत्न, शीघ्रगामी, कृतार्थ और परहृद्गत दूतों जैसे शोभित थे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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