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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य इत्येवं धीसखस्यास्य श्रुत्वा कालोचितं वचः । ऊरीकृत्य तदाख्यातं युद्धे सज्जोऽभवन्नृपः ॥१२७॥ दूतोऽहं प्रेषितः स्वामिनाहातुं त्वां यथोचिती । स्यात् तथा क्रियतां शीघ्रकृत्ये खल्वविलम्ब्य यत् ॥१२८॥ इति दूतोदितं श्रुत्वाऽश्वसेनः सह सैनिकैः । प्रस्थानं कर्तुमारेभे तावत् पार्श्व इदं जगौ ॥१२९॥ सुते सति मयि स्वामिन्न प्रस्थानं तवोचितम्। रवेर्बालातपेनापि तमः किं न विहन्यते ? ॥१३॥ इत्युक्तवा संननाहोच्चैः श्रीपार्श्वः सबलः स्वयम् । सैनिकै रिभिर्युक्तश्चक्रे प्रस्थानमङ्गलम् ॥१३१॥ तावच्च कालयमन: सधणाभ्यषेण यत् । प्रसेनजिच्चाभ्यमित्रं सहसैन्यस्तदाऽचलत् ॥१३२॥ द्वावेव ध्वनिनी स्वां स्वां विभज्योतिमदोद्धरौ । रणभूमिमधिष्ठाय तस्थतुर्विग्रहार्थिनी ॥१३३॥ रणतूर्यमहाध्वानः सेनयोरुभयोरभृत् । सुभटानां युयुत्सूनां वर्धयन् मृधसाहसम् ॥१३४॥ (१२७) इस प्रकार बुद्धि ही जिसका मित्र है ऐसे उस वृद्धसचिव के समयोचित वचनों को सुनकर राजा (प्रसेनजित्) उसकी बात स्वीकार कर युद्ध के लिए सज्जित हुए । (१२८) हे स्वामिन् ! मैं दूत रूप में आप को बुलाने के लिए आया हूँ। आप उचित शीघ्रता करिये जिससे कार्य में विलम्ब न हो । (१२९-१३०) दूत की बात सुनकर महाराजा अश्वसेन सैनिकों के साथ ज्योहि प्रस्थान करने लगे तब ही पार्श्व कुमार ने यह कहा- हे स्वामिन् !, मुझ पुत्र के होते हुए आपका युद्धस्थल में प्रस्थान करना उचित नहीं है । सूर्य के बाल आतप (प्रातःकाल के, उदय होते सूर्य) द्वारा क्या अन्धकार नष्ट नहीं किया जाता ? (१३१) इस प्रकार उच्च स्वर से कहकर उस बलवान पार्श्वकुमार ने असंख्य सैनिकों के साथ युद्ध के लिए मंगल प्रस्थान किया । (१३२) उधर कालयमन ने मी समस्त समुदाय के साथ प्रस्थान किया तथा महाराज' प्रसेनजित् भ सेना सहित शत्रु के प्रति रवाना हुए। (१३३) दोनों मदोद्धत राजाओं ने अपनी अपनी सेनाओं को विभक्त कर, रणभूमि में पहुँचकर युद्ध की इच्छा से अपनी स्थित जमा दी । (१३४) दोनों सेनाओं में युयुत्सु सुभटों के युद्ध-साहस को बढ़ाती रणभेरियों की महान ध्वनि हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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