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________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित स मातुरुदरे रेजे त्रिज्ञानज्योतिरुज्ज्वलः । स्फुटस्फटिकगेहान्तर्वतिरत्नप्रदीपवत् ॥६४॥ सुरासुरनरैर्वन्द्या बभूव भुवनत्रये ।। कला चान्द्रीव रोचिभिर्भासमाना जिनाम्बिका ॥६५॥ धन्या वामा हि सा रामा मौलिचूडामणियया ।। ध्रियतेऽन्तः परब्रह्मधाम काममनोहरम् ॥६६॥ अथ सा नवमासानामत्यये तनयं सती । प्रासूत त्रिजगद्व्यापिज्योतिरुयोतिताम्बरम् ॥६७॥ पौषमास्यसिते पक्षे दशम्यां च विशाखया । युक्ते चन्द्रेऽर्भरूपेण प्रादुरासीद् जगत्प्रभुः ॥६८॥ ज्ञानत्रयधरो बालो बालार्क इव दिद्युते । स वामाया:इव प्राच्याः कुक्षौ सोद्योतमुद्गतः ।।६९॥ मरुत्सीकरसंवाही पनखण्डं प्रकम्पयन् । ववौ मन्दं दिशः सर्वाः प्रसेदुः शान्तरेणवः ॥७॥ हर्षप्रकर्षता सर्वा जनेषु समजायत । मन्दारसुन्दरादिभ्यः पुष्पवृष्टिस्तदाऽपतत् ॥७१॥ (६४) स्फुट स्फटिक के घर में रहे रत्न के प्रदोष की तरह तीन ज्ञान की ज्योत मे उजज्वल बर माता के पेट में शोभित था। (६५) तीनों लोक में चन्द्र की कला की भौति कान्ति से देदीप्यमान जिनेश्वर की माता सुर, असुर और मनुष्यों की पूज्य बनी। (६६) वह स्त्री धन्य है तथा स्त्रियों में मूर्धन्य है जिसने अपने अन्दर (गर्भ में) कामदेव के मन को हरने वाला परब्रह्म का तेज धारण किया है । (६७) तीनों लोकों को व्याप्त करने वाले और आकाश को प्रकाशित करने वाले प्रकाशस्वरूप पुत्र को नौ माह व्यतीत हो जाने पर उस महारानी ने जन्म दिया। (६८) पौष माह में, कृष्ण पक्ष में, दशमी तिथि के दिन जा. चन्द्र विशाखा नक्षत्र से युक्त था तब बालरूप में जगत्प्रभु का प्राकट्य हुआ । (६९) तीन ज्ञानों को धारण करता हुआ वह बालक बालसूर्य की भांति प्रकाशमान था; वह पूर्वदिशा की कुक्षि (अन्तराल) के समान वामादेवो को कुक्षि में प्रकाश के साथ उदय में आया । (७०) उस समय सम्पूर्ण दिशाएँ शान्तधूलि वाली थीं तथा जलबिन्दुओं को अन्य स्थान पर ले जाने वाला, कमलखण्ड को कम्मित करने वाला वायु धोरे धीरे बह रहा था । (७१) सर्वत्र लोगों में हर्ष का आधिक्य समुत्पन्न हुआ । तथा मन्दार, सुन्दर आदि वृक्षों पर से पुष्पों की वर्षा होने लपी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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