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श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य नेपथ्यैः सम्पदो यत्र सूक्तिभिर्गुणिनां गुणाः । यौवनान्यनुमीयन्ते पौराणां रतविभ्रमैः ॥८॥ धन्विष्वेव गुणारोपस्तब्धता यत्र वा मदः । करिष्वेवातपत्रेषु दण्डो भङ्गस्तु वीचिषु ॥९॥ आरूढयोगिनां यत्र ब्रह्मण्येवातिसम्मदः । इलथत्वं विग्रहेष्वेव विषयेष्वेव निग्रहः ॥१०॥ यत्र गाङ्गास्तरङ्गौघाः कल्मषक्षालनक्षमाः । जन्मिनां स्वर्गसर्गाय पुण्यपुजा इवोज्ज्वलाः ॥११॥ पात्रसाद् यत्र वित्तानि नृणां चित्तानि धर्मसात् । सद्धर्मः शास्त्रसादेव नयमार्गस्तु राजसात् ॥१२॥ तत्रासीदश्वसेनाह्वो नृप इक्ष्वाकुवंशजः । . निर्जितो यत्प्रतापेन तपनः परिधिं दधौ ॥१३॥ सर्वकार्येषु यस्याऽऽसीच्चक्षुद्वैतं महीपतेः । एकश्चारो विचारोऽन्यो दृशौ रूपादिदर्शने ॥१४॥ यस्य धर्मार्थकामानां बाधा नासीत् परस्परम् । सख्यमाप्ता इवानेन यथास्वं भजता नु ते ॥१५॥
(८) यहाँ वेषभूषा से (=पहनने के कपड़ों से) समृद्धि का अनुमान होता है, सुवचनों से गुणीजनों के गुणों का अनुमान होता है तथा कामक्रीडाओं से नगरजनों के (रसिक) यौवन का अनुमान होता है। (९) यहाँ धनुषधारियों में ही गुण (प्रत्यञ्चा) का आरोप था अन्यत्र नहीं; हाथियों में ही मद तथा स्तब्धता थी; आतपत्र (=छातों) में हो दण्ड लगा हुआ था ( =अन्य किसी नागरिक के लिए दण्ड का विधान नहीं था), तथा पानी की लहरों में ही भङ्ग अर्थात् तोंड मरोड़ था (=जनता में कहीं भी तोड़ मरोड़ अर्थात् अव्यवस्था नहीं थी)। (१०) आरूढ़ योगी लोगों को ब्रह्मध्यान में ही अत्यन्त हर्ष था; लड़ाई-झगड़ों में शैथिल्य था तथा-विषय वासमाओं पर पूरा दमन था । (११) यहाँ वाराणसो नगरी में गंगा नदी की तरंगों के समुदाय पाप प्रक्षालन में समर्थ थे । वे प्राणियों के स्वर्गसृजन के लिए उज्ज्वलपुण्यों के ढेर के समान थे। (१२) इस नगरी में धन योग्य व्यक्ति को दिया जाता था, मनुष्यों के चित्त धर्म के अधीन थे, सधर्म शास्त्र के आधीन था तथा नीतिमार्ग राजा के आधीन था। (१३) उस वाराणसी नगरी में अश्वसेन नाम वाला इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न राजा था जिसके प्रताप से परास्त सूर्य उसकी प्रदक्षिणा करता था। (१४) उस राजा अश्वसेन के दो अपूर्व नेत्र सभी कार्यों में दो प्रकार से संलग्न थे। एक नेत्र था गुप्तचर और दूसरा था विचार (=विवेक) । दो आँखें तो रूप आदि को ही देखने वाली थीं। (१५) उस राजा के यहाँ धर्म-अर्थ-काम में परस्पर टकराव नहीं था । वह राजा उमका यथायोग्य सेवन करता था इसलिये वे परस्पर मित्रता रखते थे।
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