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________________ तृतीयः सर्गः अथ मध्यमलोकस्य मध्यवर्त्यन्तरीपराट् । हिमाद्रिमौलियों जम्बूतरुच्छत्रच्छविर्बभौ ॥१॥ द्वीपोऽयं लवणाम्भोधिमेखलो लक्षयोजनः । वस्तु · सप्तभिः षभिः कुलादिभिरधिश्रितः ॥२॥ युग्मम् ।। हिमवल्लवणाम्भोधि-मध्य-मण्डल-मण्डनम् । भारतं वर्षमत्रास्ति पुण्यराशिरिवाङ्गिनाम् ॥३॥ तत्राऽऽस काशिविषयस्त्रिदिवस्यैकखण्डवत् । स्वर्गिणां भुवमाप्तानां शेषैः पुण्यविनिर्मितः ॥४॥ तत्र बाराणसीत्यासीत् नगरीवाऽमरावती । यत्र संस्कृतवक्तारः सुरा इव नरा बभुः ॥५॥ नित्यानन्दाः प्रजा यत्र धर्मकर्मसु कर्मठाः । निसर्गचतुरालापा भान्ति यत्र पुराङ्गनाः ॥६॥ सदानभोगैर्यत्रत्यैः पौरैर्नित्यकृतोत्सवैः । वैदग्ध्यमधुरालापैः स्वर्गलोकोऽधरीकृतः ॥७॥ (१) हिमवन्त पर्वत का मुकुट धारण किये हुए और जम्बूवृक्ष के छत्र को शोभा को धारण किये हुए जम्बूद्वीप मध्यमलोक के मध्य में शोभायमान था (२) लवण समुद्वरूप - कटिमेखला बाला एक लाख योजन विस्तृत यह जम्बूद्वीप (भारत आदि) सात क्षेत्रों से तथा (हिमवन्त भादि, छ: कुलगिरियों से अधिष्ठित है । हिमवन्त पर्वत के और लवण समुद्र के मध्य भाग को शोमा देने वाला भारतवर्ष मानो शरीरधारियों को पुण्यराशि है । (४) वहाँ स्वर्ग के एक खण्ड (भाग) को भाँत काशो प्रदेश है जो पृथ्वी पर आये स्वर्गवासियों के शेष पुण्यों से बमाया गया है। (५) इस काशी प्रदेश में, देवताओं की नगरी अमरावतो की तरह वाराणसी माम मगरी थी। जिस नगरी में संस्कृत बोलने वाले मानव देवताओं को तरह शोभा पाते थे। (६) इस नगर की प्रजा हमेशा आनन्द में रहने वालो थी तथा धर्मकर्मों में कुशल-थी। यहां की रमणियां प्रकृति से ही वार्ताताप में चतुर होने से मनोहारी थीं। (७) सदा आकाश में उड़ने वाले ( या दान के साथ साथ उपभोग करने वाले), हमेशा उत्सव मनानेवाले और विद्वत्तापूर्ण मधुर बातें करने वाले यहाँ के परिजनों ने स्वर्गलोक को हीन बना दिया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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