SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित राजन्वती धरा सर्वा तस्मिन्नासीत् सुराजनि । यद्भयाद् भीबिभेति स्म तल्लोकेषु कुतो भयम् ? ॥१६॥ शिष्टानां सोमसौम्योऽसौ दुष्टानां तपनद्युतिः । तमः-प्रकाशसंवीतश्चक्रवाल इवाचलः ॥१७॥ वामानाम्नीति देव्यासीत् तस्य सौन्दर्यशालिनी । या वामलोचनानां नु चूडामणिरिवाद्भुता ॥१८॥ मति-द्युति-विभूति-श्री-लावण्याद्भुतसुन्दरैः । स्त्रीसर्गस्य परा कोटिर्निर्ममे विधिना गुणैः ॥१९॥ तत्कुक्षौ शितिचैत्रस्य चतुर्थ्यां समवातरत् । कनकप्रभदेवात्मा विशाखायां दिवश्च्युतः ॥२०॥ साऽन्यदा मञ्चके सुप्ता दरनिद्रामुपागता । इमांश्चतुर्दशस्वप्नान् ददृशे शुभसूचकान् ॥२१॥ इभमैरावणाभं सबंहितं त्रिमदतम् । गवेन्द्रं कुन्दचन्द्राभं ककुद्मन्त(तं, घनध्वनिम् ॥२२॥ मृगेन्द्रमिन्दुधवलं केसराटोपशोभितम् । पद्मा पद्मासनासीनां स्नाप्यां दिग्गजदन्तिभिः ॥२३॥ (१६) उस सुयोग्य राजा के शापन करने पर सारी पृथ्वी राजन्वती (अच्छे राजावाली) थी। जिसके भय से भय खुद ही कांपता हो ऐसे उस राजा को तीनों) लोक में कहाँसे भय हो सकता है ? (१७) शिष्टाचार सम्पन्न व्यक्तियों के लिए वह राजा चन्द्रमा के समान मौस्य व दुष्टों के लिए सूर्य की भौति दीप्तिमान् था । वह (राजा) अन्धकार और प्रकाश से घिरे हुए चकवाल पर्वत की भौति था (१८) उस राजा की सौन्दर्यसम्पन्न बामा नामक देवी (महारानी) थो जो शोभन नेत्र वाली स्त्रीयों में चूडामणि के समान अद्भुत थी (= अर्थात् सर्वश्रेष्ठ थो) । (१९) स्वयं विधाता ने मति, द्युति, ऐश्वर्य, लक्ष्मी व सौन्दर्य आदि अद्भुत गुणों से तो सृष्टि में परमकोटि (उच्च कोटि) का (अर्थात् उस महारानी का) निर्माण किया था । (२०) उस महारानी की कोख में चैत्र मास कृष्ण चतुर्थी में, विशाखा नक्षत्र में, स्वर्ग मे च्यवन प्राप्त कर कनकप्रभदेव का अवतार हुआ । (२१) एक दिन, पलंग पर सोयी हुई उसने अल्प निद्रा प्राप्त कर शुभसूचक चौदह स्वप्न देखे । (२२-२३-२४) तीन स्थान पर मदस्राव से "यक्त और गर्जना कर रहे हाथी को कुन्दपुष्प तथा चन्द्रमा के समान कान्तिवाले, उन्नत कन्धरावाले और मेघ समान आवाज वाले वृषमेन्द्र को अपनी केसरा (अयाल) के आडम्बर से शोभित और चन्द्रमा के समान श्वेत सिंह को पुषण की सुगन्ध से आकृष्ट होकर घूमते भ्रमरों की प्रकार से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy