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. ॐ ह्रीं अर्हदादिसप्तदशमंत्रेभ्यः समुदायाय॑म् निर्वपामीति स्वाहा ।
(९ बार णमोकार मन्त्र) विघ्नौघाः प्रलयं यान्तु व्याधयो नाशमाप्नुयुः, विषं निर्विषतां यातु स्थावरं जंगमं तथा ॥
(पुष्पांजलिः) आचार्य, श्रुत, सिद्ध भक्ति पाठ
ॐ पर ब्रह्मणे नमोनमः स्वस्ति स्वस्ति नंद नंद वर्धस्व वर्धस्व विजयस्व विजयस्व पुनीहि पुनीहि पुण्याहं पुण्याहं मांगल्यं मांगल्यं जय जय।
(पुष्पांजलिः) ॐ ह्रीं सौषधिना ध्वजदण्ड शुद्धिं करोमि । ॐ ह्रीं श्रीं नमोऽर्हते पवित्र जलेन ध्वजदण्डशुद्धिं करोमि। पश्चात् स्वस्तिक करावें। ॐ ह्रीं त्रिवर्णसूत्रेणध्वजदण्डं परिवेष्टयामि । ॐ णमो अरिहंताणं स्वाहा ।
(इस मन्त्र को ९ बार जपें) रत्नत्रयात्मकतयाऽभिमतेऽत्र दण्डे लोकत्रय प्रकृत केवल बोध रूपम् ।
संकलप्य पूजितमिदं ध्वजमर्च्य लग्ने स्वारोहयामि सन्मंगल वाद्य घोषे । ॐ णमो अरहताणं स्वस्ति भद्रं भवतु सर्वलोकस्यशान्तिभर्वतु स्वाहा। ॐ ह्रीं अहं जिन शासनपताके सदोच्छिता तिष्ठ तिष्ठ भव भव वषट् स्वाहा। इन दोनों मन्त्रों का उच्चारण कर ऊपर पताका सुलझाकर फहरावें।
ध्वज गीत आदि वृषभ के पुत्र भरत का भारत देश महान । वृषभ देव से महावीर तक करें सुमंगल गान ।। पंचरंग पाँचों परमेष्ठी युग को दे आशीष । विश्व शान्ति के लिये झुकायें पावन ध्वज को शीष । जिन की ध्वनि जैन की संस्कृति अग मग को वरदान ।।
__ भारत देश महान्
ध्वजा का उद्देश्य हम जैन शासन के प्रति और सार्वभौम महामन्त्र णमोकार के प्रति तथा अनेकांत और अहिंसावाद के प्रति मन, वचन, काय से निष्ठा रखने की प्रतिज्ञा करते हैं। पंचवर्ण-ध्वजा गतिसूचक (जीवन, चेतना)
अरहंत - धवल (घातिया कर्म का नाश करने पर शुद्ध निर्मलता का प्रतीक) सिद्ध - रक्त (अघाति कर्म की निर्जरा का प्रतीक)
[प्रतिष्ठा-प्रदीप
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