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धृत्वा शेखरपट्टहार पदकं, ग्रैवेयकालंवकम् । केयूरांगदमध्य बंधुर कटिसूत्रं च मुद्रांकितम् ॥ चंचत्कुण्डल कर्णपूर ममलं, पाणिद्वये कंकणम् । मंजीरं कटकं पदे जिनपतेः श्रीगंधमुद्रांकितम् ॥
(इति षोडषाभरण धारणम्) विधेर्विधातुर्यजनोत्सवेऽहं गेहादिमूर्छामपनोदयामि । अनन्य चेताः कृतिमादधामि स्वर्गादिलक्ष्मीमपि हापयामि ॥
(यह पढ़ कर गृहस्थी के कार्यों से निवृत्त रहने का नियम करें।) ॐ वधिपतये आं हां अः ऐं हौं हः खू क्ष क्षः इन्द्राय संवौषट् । इस मन्त्र को २१ बार पढ़कर इन्द्रों पर सरसों क्षेपें । योगि सिद्धि भक्ति पढ़ने के पश्चात् -
ॐ ही अह अ सि आ उ सा णमोअरहंताणं सप्तर्द्धि समृद्धगणधराणं अनाहत पराक्रमस्ते भवतु भवतु ह्रीं नमः स्वाहा। ___'ॐ तत्सदद्य एषां यज्ञनायकस्य पत्नी सहितस्य इन्द्राणी सहितानां सौधर्मेन्द्रादीनां च इक्ष्वाक्वादि वंशे श्रीऋषभनाथादि संताने काश्यपादि गोत्रे परावर्तन यावदध्वरं भवतु क्रौं ह्रीं नमः' उक्त मन्त्र और यह मन्त्र पढ़कर यज्ञनायक व इन्द्रों पर पुष्पक्षेपण करें । एक बार भोजन का नियम करें। इस मन्त्र से बिंब प्रतिष्ठा में सूतक पातक नहीं लगेगा।
यद्वंश्यतीर्थकरबिंबमुदीर्यसंस्था मुख्या तदीयकुलगोत्रजनिप्रवेशात् । संवृत्त गोत्रचरण प्रतिपातयोगादाशौचमावहतुनोऽद्यभवप्रशस्तम् ॥५८॥
(ज.प्र. पृ-६२) ध्वजा-झंडारोहण मण्डप से डेढ़ा या दुगुना ऊँचा (तीन कटनी निर्माण कराकर उसके भीतर) ध्वज दंड लगेगा।
प्रतिष्ठा मण्डप में शोभा यात्रा पूर्वक जिन प्रतिमा विराजमान कर देवें । मण्डप के आगे झण्डारोहण करावें । पश्चात् अभिषेक-पूजा प्रारंभ करें। मंगलाष्टक के पश्चात् ।
श्रीमज्जिनस्य जगदीश्वरताध्वजस्य, मीनध्वजादि रिपुजाल जयध्वजस्य | तन्न्यासदर्शनजनागमनध्वजस्य, चारोहणं विधिवदाविदधे ध्वजस्य ॥
(पुष्पांजलि) ॐ श्रीं क्षी भूः स्वाहा (जल से भूमि शुद्ध करें) संसारदुःखहनने निपुणं जनानाम्, नाद्यंतचक्रमिति सप्तदशप्रमाणं ।
संपूजये विविधभक्ति भरावनम्रः शान्तिप्रदं भुवनमुख्य पदार्थसाथैः ॥ ४४]
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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