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मण्डप में शांति यज्ञ के लिए ३ कुंड, पहला त्रिकोण, दूसरा चौकोर और तीसरा गोल तथा प्रत्येक की तीन-तीन कटनी जो क्रमशः नीचे से ५-४-३ अंगुल चौड़ी हो । सबकी गहराई १२ अंगुल जमीन में और १२ अंगुल ऊपर हो । तीनों के नाम सामान्य केवली, तीर्थंकर और गणधर कुण्ड हैं। उनकी अग्नि का नाम दक्षिणाग्नि, गार्हपत्याग्नि और आह्वनीयाग्नि है। श्री जयसेनाचार्य (वसुबिन्दु) प्रतिष्ठा पाठ के श्लोक ३५१ से ३५९ तक इन होम कुण्डों का वर्णन है। यही अग्नि संस्कारपूर्वक हवन और श्लोक ४२१ के अनुसार जप मन्त्र का दशांग हवन बताया है । इन तीनों कुण्डों के स्थान में मिट्टी (ईंटों) का एक हाथ लम्बा-चौड़ा और चार अंगुल ऊँचा स्थंडिल बनाकर केवल कर्पूर व लाल सफेद चन्दन समिधा व अगर-तगर द्वारा कम-से-कम धूप व घृत से शान्ति यज्ञ होता है, जो सरल और शुद्धविधि है।
मेह की पाण्डुक शिला प्रतिष्ठा मण्डप से उत्तर दिशा में इसका निर्माण करावें । ईंटों द्वारा नीचे जमीन से प्रथम कटनी ४ हाथ ऊँची, ८ हाथ चौड़ी गोलाकार, उसके ऊपर द्वितीय कटनी ३|| हाथ ऊँची, ४ हाथ चौड़ी गोलाकार, उसके ऊपर तृतीय कटनी २॥ हाथ ऊँची, १ हाथ चौड़ी गोलाकार । तीसरी कटनी के ऊपर मध्य में अभिषेक जल निकलने का गर्त रखें, जिसमें लोहे का नल नीचे तक फिट कर दें और नीचे की कटनी के नीचे भाग से एक टेढ़ा नल फिट करें । अभिषेक का जल उसके द्वारा समीप ही खड्डा रखकर उसमें जाता रहे और ऊपर से वह ढंका हो । पूर्व और पश्चिम में चढ़ने-उतरने की सीढ़ियाँ बनेंगी । पाण्डुक शिला के चारों ओर बड़े घेरे में हाथी तीन प्रदक्षिणा दे सकें, ऐसा स्थान छोड़ना चाहिये।
दीक्षा वृक्ष विधिनायक भगवान् द्वारा तप कल्याणक के समय दिगम्बर मुनि दीक्षा किसी वन में ली जाती है, अतः उस वन में निम्नलिखित २४ तीर्थंकरों के दीक्षा वृक्षों में से यथासम्भव कोई भी वृक्ष होना चाहिये जिसके नीचे दीक्षा विधि हो सके।
१. वट, २. सप्तपर्ण, ३. साल, ४. साल, ५. प्रियंगु (कंगनी), ६. प्रियंगु, ७. शिरीष, ८. नाग, ९. साल, १०. पलास (ढाक), ११. तेन्दू, १२. पाटल (गुलाब), १३. जम्बू, १४. पीपल, १५. दधिपर्ण, १६. नंदी, १७. तिलक, १८. आम्र, १९. अशोक, २०. चम्पक, २१. मौलश्री, २२. बाँस, २३. धव, २४. साल। यहीं चन्दोवा और तख्त, टेबलें आदि जमाकर दीक्षा विधि की जाती है।
समवसरण रचना मण्डप में ज्ञान कल्याणक के समय समवसरण की रचना याग मण्डल के आगे वेदी पर करना चाहिये, जहाँ चार प्रतिमा विराजमान करते हैं और ज्ञान कल्याणक की पूजा व दिव्यध्वनि-उपदेश होता है।
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[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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