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३. मातृका यन्त्र - वेदी, गर्भकल्याणक में ४. विनायक - शान्ति जप व शान्ति धारा में ५. लघु सिद्ध यन्त्र - सिद्ध प्रतिष्ठा में ६. वृहत सिद्ध यन्त्र - स्वस्ति विधान मन्त्र आदि में ७. बोधि समाधि - तपकल्याणक में ८. गणधरवलय - आचार्यादि चरण प्रतिष्ठा में ९. नयनोन्मीलन - मन्त्र संस्कार में १०. मोक्षमार्ग- समवसरण में ११. वर्धमान - गर्भ व जन्म कल्याणक में १२. नंद्यावर्त स्वस्तिक - नांदी विधान व वेदी शुद्धि में १३. पूजा यन्त्र - रथयात्रा में १४. नक्शा - अंकन्यास का १५. त्रैलोक्यसार - गर्भादि कल्याणकों में नोट : दो यन्त्र मूल प्रतिमा विराजमान का व नंद्यावर्त चाँदी के । शेष ताँबे के यन्त्र रहेंगे।
प्रतिष्ठा मण्डप आदि का निर्माण बिम्ब प्रतिष्ठा मण्डप का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में रखा जावे। सामान्य रूप से ३०० फुट लम्बा १६८ फुट चौड़ा हो । उसमें २४ हाथ लम्बी चौड़ी वेदी (चबूतरा), २ से ४ हाथ तक ऊँची रखे । उसके मध्य में ८ हाथ लम्बी चौड़ी याग मण्डल की वेदी जिसकी ऊँचाई है रहे । इसी के सामने चबूतरे पर ४ तख्त बिछाकर समवशरण मण्डल माँडा जावे, भक्तामर या चौबीस महाराज का छोटा मण्डल माँडा जावे। यागमण्डल की वेदी के पीछे १ हाथ छोड़कर ३ कटनी बनवाएँ जिनमें २-२ हाथ चौड़ी और १-१ हाथ ऊँची तीनों रखें । दीवाल हाथी की सैंड के आकार की हो, जिसकी ऊँचाई ३|| हाथ ऊपर रखें।
उक्त बड़ा चबूतरा कल्याणक दृश्य तथा राजमहल पर्दा, स्वप्न के दर्शन हेतु पक्का और ठोस बनवा कर उस पर पतरे लगवाना चाहिये । उसके पीछे चटाई या पतरों की ओट करके जाप्य-गृह, स्नान-गृह, द्रव्य धोने का स्थान, इन्द्र-इन्द्राणियों के वेशभूषा बदलने का स्थान निर्माण करावें तथा यहीं चारों ओर टीन का पक्का कोठार रहे । पास ही चौकीदार का पहरा आवश्यक है। मण्डप के आगे पीतवर्ण बड़े झण्डे का स्थान मण्डप से डेढ़ा या दुगुना काष्ठ का या पाईप ऊँचा लगाने को तीन कटनी ईंटों से मजबूत बनाई जावे।
नोट : प्रतिष्ठा के २८, २१, १४, १०, ९ दिन पूर्व भी यह झण्डारोपण संकल्प के रूप में किया जाता है, इसी समय मण्डप मुहूर्त भी स्तंभारोपण के रूप में किया जाता है, जो आग्नेय या सूर्य के अनुसार दिशा में करें।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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