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३. मण्डल विधान - तेरहद्वीप, समवशरण, चौबीस महाराज, पंचपरमेष्ठी, भक्तामर आदि। ४. नाँदी विधान व इन्द्र प्रतिष्ठा ५. जल (घट) यात्रा व मन्दिर वेदी कलश, ध्वज दंड शुद्धि नोट : जल पात्र के जल को वेदी पर छिड़कना । ६. यागमण्डल (प्रतिष्ठा संबंधी विधि) ७. गर्भ कल्याणक की पूर्व क्रिया और पूर्वभव दिग्दर्शन (रात्रि में) ८. गर्भ कल्याणक प्रातः ९. जन्म कल्याणक (पाँडुकशिला पर जन्माभिषेक) १०. पालना (झूला) ११. राज सभा १२. वैराग्य एवं जिनदीक्षा १३. आहार दान १४. मंत्र संस्कार एवं समवशरण (ज्ञान कल्याणक) १५. निर्वाण भक्ति १६. जिन मन्दिर में मूलनायक आदि प्रतिमा विराजमान, शिखर पर कलशारोहण एवं ध्वजारोहण १७. शान्ति यज्ञ १८. रथ यात्रा (मंडप में उत्सव हेतु लाई गई प्रतिमा को वापस विराजमान हेतु) १९. प्रतिष्ठा समापन (आभार प्रदर्शन)
नोट : उक्त कार्यक्रमों में बिंब (पंच कल्याणक) प्रतिष्ठा के सिवाय शेष कार्यों में भी यही क्रम सम्मिलित है। प्रतिमा प्रतिष्ठा में गर्भ कल्याणक के दो दिन पूर्व प्रशस्ति लेख भी प्रतिमाओं पर अंकित करा देना चाहिये।
प्रतिमा प्रशस्ति स्वस्ति श्री वीर निर्वाण संवत्सरे २५..... तमे..... विक्रमाशब्दे २०...... तमे...... मासे..... तमे..... पक्षे...... तिथौ...... वासरे..... मूल संघे श्री दिगम्बर जैन कुन्दकुन्दाचार्याम्नाये ...... स्थाने जिन बिम्ब प्रतिष्ठोत्सवे...... दि. जैनाचार्य श्री १०८..... सान्निध्ये प्रतिष्ठाचार्यत्वे..... इत्येतैः प्रतिष्ठापितमिदं जिन बिंबं सर्वलोकस्य कल्याणाय भवेत् ।
प्रतिष्ठा में मन्त्र जप जिस वर्ण (शब्द) या वर्ण समूह का बार-बार मनन किया जाय और जिससे मन की चंचलता का त्राण (रक्षण) हो वह मन्त्र है। प्रभावशाली, महत्वपूर्ण, रहस्यमय, शब्दात्मक वाक्य मन्त्र हैं। जिन ध्वनियों का घर्षण होने से दिव्य ज्योति प्रगट होती है, उन ध्वनियों के समुदाय को मन्त्र कहते हैं।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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