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________________ वेदी निर्माण मन्दिर में पूर्व या उत्तर दिशा में जिसका मुख हो ऐसा ढाई फुट ऊँचा चबूतरा और उसके ऊपर प्रतिमा बड़ी एक या अधिक हो तो उस माफिक लंबाई-चौड़ाई रखते हुए तीन कटनी निर्माण करावे । उक्त प्रथम ढाई फुट ऊँचाई पर कमल व उस पर बड़ी एक प्रतिमा विराजमान करने योग्य स्थान बनवाया जा सकता है। पीछे भामण्डल व छत्रत्रय पाषाण के होना चाहिये जिससे चोरी की आशंका न रहे। आजू-बाजू अभिषेक हेतु खड़े होने की जगह रहे । ऐसी प्रतिमा बड़े हाल में शोभा देती है जिसके दूर से भी दर्शन होते हैं। बीच की मूलनायक प्रतिमा जिस वेदी में विराजमान की जावे उसके सामने के दरवाजे की ऊँचाई निम्न प्रकार देखकर रखे - विभज्य नवधा द्वारं तत्षड्भागानधस्त्यजेत् । ऊर्ध्वद्वौ सप्तमं तद्वत् विभज्य स्थापयेद् दृशाम् ॥ दरवाजे का नवभाग करके उसके नीचे (वसुनंदि प्रतिष्ठा पाठ) छह भाग और ऊपर के दो भाग छोड़कर सातवें भाग में तथा इस सातवें भाग के नवभाग करके इसके भी सातवें भाग में उस प्रतिमा की दृष्टि रहे, जिसे वेदी में विराजमान करना है। अन्य मतानुसार द्वार के ६४ भाग करके ५५वें भाग में प्रतिमा की दृष्टि रखी जाये । इस नियमानुसार वेदी व उस पर की कटनी या कमल की ऊँचाई का ज्ञान हो जाता है। वेदी के पीछे की दीवार से प्रतिमा को दूर विराजमान करें तथा पीछे कोई द्वार व उजालदान नहीं बनवायें। परिक्रमा अवश्य रखी जावे । दीवार में आला बनवाकर उसमें प्रतिमा विराजमान करना शुभ नहीं है। मान-स्तम्भ और शिखर मन्दिर के सामने पूर्व या उत्तर दिशा में मन्दिर की ऊँचाई से ऊँचा मान-स्तम्भ निर्माण करावें। उसमें ऊँचे भाग में व नीचे भाग की तीसरी कटनी में चारों दिशाओं में चार-चार प्रतिमा, समान ऊँची व मूलनायक के नामवाली विराजमान करें। शिखर भी गुंबज रूप में नहीं, लम्बा व ऊँचा मन्दिर की ऊँचाई से सवाया या डेढ़ा निर्माण करावें । वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों का परिचय क्र. नाम पिता माता जन्मस्थल चिन्ह वंश वर्ण ऋषभनाथ नाभिराय मरुदेवी अयोध्या वृषभ स्वर्ण अजितनाथ जितशत्रु विजयसेना अयोध्या गज संभवनाथ जितारि सुषेणा श्रावस्ती स्वर्ण अभिनंदननाथ संवर सिद्धार्थ अयोध्या वानर स्वर्ण सुमतिनाथ मेघप्रभ सुमंगला अयोध्या स्वर्ण पद्मप्रभ सुसीमा कौशांबी कमल सुपार्श्वनाथ सुप्रतिष्ठ पृथ्वी वाराणसी स्वस्तिक हरित चन्द्रप्रभ महासेन लक्ष्मणा चन्द्रपुरी चन्द्र शुक्ल पुष्पदन्त काकंदी मगर १०. शीतलनाथ दृढ़रथ भाद्रिल कल्पवृक्ष ११. श्रेयांसनाथ विष्णु विष्णुश्री सिंहपुर गेंडा इक्ष्वाकु स्वर्ण अश्व कोक धरण रक्त सुग्रीव रमा सुनंदा स्वर्ण स्वर्ण [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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