________________
प्रतिमा पाषाण के दोष बेलवृक्ष की छाल निर्मल कांजी के साथ पीसकर पाषाण पर लेप करने से उसके दाग दृष्टिगोचर हो जाते हैं । उस दाग से पाषाण के भीतर कोई जीव या जल का ज्ञान हो जाता है । ऐसी पाषाण प्रतिमा हानिकारक होती है । पाषाण में मूल वस्तु के रंग से भिन्न वर्ण की रेखा हो तो उसे सदोष मानना चाहिये। नीले आदि रंग की रेखावाला पाषाण प्रतिमा के लिए त्याज्य है । मृत्तिका कण, काष्ठ, कांसा, सीसा, कलई, विलेपन की प्रतिमा पूज्य नहीं है (न मृत्तिका काष्ठ विलेपनादि, जातं जिनेन्द्रैः प्रतिपूज्यमुक्तम् ।)
(वा.सा.) नासामुखे तथा नेत्रे हृदये नाभि मण्डले । स्थानेषु च गतांगेषु प्रतिमा नैव पूजयेत् ।। जीर्णं चातिशयोपेतं तद्विंबमपि पूजयेत् । शिरोहीनं न-पूज्यं-स्यात्-निक्षिपेत्तन्नदादिषु ।।
(उ.श्रा.) नासा, मुख, नेत्र, नाभि, सिर से रहित प्रतिमा पूजनीय नहीं है । जीर्ण और सातिशय प्रतिमा पूज्य है, खंडित प्रतिमा को गहरे जल में क्षेपण करें।
प्रतिष्ठिते पुनर्बिम्वे संस्कारः स्यान्न कर्हिचित् । संस्कृते च कृते कार्या प्रतिष्ठा तादृशी पुनः ।। संस्कृते तुलिते चैव दुष्ट स्पृष्टे परीक्षिते । हृते विम्वे च लिंगे च प्रतिष्ठा पुनरेवहि ।।
(आ.दि.) __ प्रतिष्ठा के बाद जिस मूर्ति का संस्कार या जीर्णोद्धार करना पड़े, दुष्ट का स्पर्श हो जाये, परीक्षा करनी पड़े या चोर चोरी कर ले जाये, ऐसी मूर्ति की प्रतिष्ठा (मन्त्र संस्कार) कराना चाहिये।
प्रतिष्ठित प्रतिमा के टांकी नहीं लगती। उसकी प्रशस्ति भी मिटाई नहीं जाती। (पीयूष श्रा.)
नोट : समवायांग, स्थानांग, आवश्यक नियुक्ति इन प्राचीन श्वेताम्बर आगमो में ५ बालयति (ब्रह्मचारी) तीर्थंकरों में महावीर जी का उल्लेख मिलता है।
प्रतिमा दोष से हानि प्रतिमा के नख, अंगुली, बाहु, नासिका व चरण में से कोई अंग खण्डित हो तो क्रमशः शत्रुभय, देशविनाश, बंधन, कुलनाश, द्रव्यक्षय होता है।
छत्र, श्रीवत्स, कर्ण खण्डित हो तो क्रमशः लक्ष्मी, सुख, बंधु का क्षय होता है।
टेढ़ी नाक, छोटे अवयव, खराब नेत्र, छोटा मुख हो तो क्रमशः दुःख, क्षय, नेत्रविनाश, भोग हानि। ऊर्ध्वमुख, टेढ़ी गर्दन, अधोमुख, ऊँच-नीच मुख हो तो धननाश, स्वदेश नाश, चिंता, विदेश गमन हो। अन्याय से धनार्जन द्वारा निर्मापित प्रतिमा दुष्काल करे। ___ इसलिये प्रतिष्ठा के पूर्व भलीभाँति प्रतिमा की परीक्षा कर लेना चाहिये। (वा.सा.-आ.प्र.)
१०]
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org