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मुख
९ ताल (वसुनंदि) १०ताल* १२ अंगुल विस्तार
१२ अंगुल
१३॥ अंगुल और लम्बाई में ग्रीवा
४ अंगुल
४ अंगुल केशांत भाग तक ग्रीवा से हृदय तक १२ अंगुल
१३।। अंगुल हृदय से नाभि तक १२ अंगुल १३॥ अंगुल नाभि से लिंग तक १२ अंगुल
१३।। अंगुल खड्गासन में दोनों लिंग से गोड़ा (घुटना) २४ अंगुल
२७ अंगुल पैरों का अंतर गोडा ४ अंगुल
४ अंगुल ४ अंगुल रखे गोडा (घुटना) से गुल्फ तक २४ अंगुल
२७ अंगुल गुल्फ (टिकूण्या) ४ अंगुल
४ अंगुल पैर की गाँठ से पैर के तले तक १०८
१२० नोट : बारह अंगुल का एक ताल, मुख या वितस्ति होता है। अंगुल को भाग भी कहते हैं।
पद्मासन प्रतिमा __ इसका माप ५४ अंगुल होता है । बैठी प्रतिमा के दोनों घुटने तक सूत्र का मान, दाहिने घुटने से बाँये कंधे तक और बाँये घुटने से दाहिने कंधे तक इन दोनों तिरछे सूत्रों का मान तथा सीधे में नीचे से ऊपर केशांत भाग तक लम्बे सूत्र का मान ये चारों भाग समान होना चाहिये।
१३|| + १३॥ + १३|| + १३|| = ५४ दोनों हाथ की अंगुली के और पेडू के अन्तर ४ भाग रखें । कोहनी की पास २ भाग का उदर से अन्तर और पोंची से कोहनी तक शोभानुसार हानि रूप रखे । नाभि से लिंग ८ भाग नीचा, ५ भाग लंबा बनायें तथा लिंग के मुख के नीचे से अभिषेक के जल का निकास दोनों पैरों के नीचे से चरण चौकी के ऊपर
करें।
* दसताल माण लक्खण भरिया
-(त्रिलोकसार, गाथा ९८६) भवबीजांकुर मथना अष्ट महाप्रातिहार्य विभवसमेताः । ते देवा दश ताला शेषा देवा भवन्ति नव तालाः ||
(यशस्तिलक उत्त. पृष्ठ-११२) यही जिन संहिता में भी लिखा है। नोटः वर्तमान में जयपुर में १० ताल की प्रतिमा बनाई जाती है।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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