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सूर्य की राशि से खात चक्र दिशाकोण विवाहमंडप देवालयारंभ गृहारंभ जलाशयारंभ आग्नेय २-३-४ १२-१-२ ५-६-७
१०-११-१२ नैऋत्य
११-१२-१ ९-१०-११ २-३-४ ७-८-९ वायव्य ८-९-१० ६-७-८ ११-१२-
१ ४ -५-६ ऐशान ५-६-७ ३-४-५
८-९-१० राशिनाम : मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन१२। नोट : विवाह-मंडपारम्भ में आग्नेय दिशा में स्तंभारोपण का मत भी है। मंदिर में कूपारंभ भी उक्त रीति से करें।
खात मुहूर्त की सामग्री व विधि श्रीफल-२, लच्छा, खैर की खूटी बारह अंगुल लम्बी-४, गेंती-१, फावड़ा-१, कुंकुम-३०० ग्राम, पिसी हल्दी-३०० ग्राम, पाटे-४, चौकी-१, छोटा सिंहासन-१, विनायक यन्त्र-१, आसन-५, पूजा द्रव्य १ किलो, धूपदान-१, जल के लोटे-२, लाल चोल-१ गज, सरसों-१०० ग्राम, दीपक-४, रुई, माचिस१, सुपारी-११, हल्दी गाँठ-११ ।
जिस दिशा में मुहूर्त करना हो उस कोने पर सीमा के भीतर की दो हाथ लंबी चौड़ी भूमि साफ कर कुंकुम व हल्दी से रेखा खींच देवें। उसके चारों दिशा में चारों खूटी गाड़ देवें । वहाँ ४ दीपक रख कर चारों
ओर लच्छा बाँध देवें । उसके भी भीतर एक हाथ लंबी-चौड़ी भूमि मापकर कुंकुम से बीच में स्वस्तिक माँड देवें । पूर्व या उत्तर दिशा में से किसी एक में पूजा करने वाले बैठे और दूसरी में यंत्र विराजमान कर देवें । सर्वप्रथम मंगलाष्टक, जल कलश स्थापन, संकल्प, नवदेवपूजा, यंत्रपूजा, निर्वाण भक्ति पाठ, णमोकार मंत्र की एक माला जप करके खड़े होकर
ॐ क्षी भूः शुद्ध्यतु स्वाहा यह मंत्र ९ बार पढ़ कर जल से भूमि शुद्ध करें और प्रत्येक व्यक्ति ५-५ बार स्वस्तिक के वहाँ गेंती मारकर फावड़ा से मिट्टी निकालें । लगभग एक फुट गहरा गड्ढा खोदें। पुण्याहवाचन, शान्तिपाठ, विसर्जन द्वारा कार्य संपूर्ण कर गुड़, धनिया या पेड़े बँटवा देवें ।
शिलान्यास सूर्य न बदला हो तो जिस दिशा में खात हुआ हो वहीं नींव भरी जाती है। विस्तार से करना हो तो चारों दिशाओं व वेदी जहाँ रखना हो, वहाँ बीच में भी नींव भरी जाती है।
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[ प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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