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कुन्दकुन्दादि आचार्यों के उपदेश से सभी मंतों की अपेक्षा (सूर्योदय से) छः घटी प्रमाण तिथि का मान ग्राह्य है। (२४ मि. एक घड़ी)
नोट- पंचांग से देखकर उक्त निर्णय करना चाहिये। इसी नियम के अनुसार सन् १९३४ से 'जैनतिथि दर्पण इन्दौर' तैयार किया जाता है।
श्री जिनबिंब पंचकल्याणक की द्वितीय विधि प्रतिष्ठा प्रदीप में आचार्य जयसेन के प्रतिष्ठा पाठ के अनुसार प्रथम विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्रतिष्ठा की दूसरी विधि कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में अधिक प्रचलित है।
पाठकों को यह जानकर हर्ष होगा कि सभी प्रतिष्ठा पाठों में गर्भ, जन्म, तप एवं ज्ञान कल्याणक के मन्त्र संस्कार समान पाये जाते हैं । गर्भ में पीठी (सिंहासन) या मंजूषा में जिनेन्द्र माता का स्थापना कर सम्पूर्ण विधि संपन्न की जाती है। (प्रतिष्ठा तिलक, पृष्ठ १२७) । जन्माभिषेक मेरु पर (हस्तिमल्ल प्रतिष्ठा पाठ, पृष्ठ १३८) इन्द्रों द्वारा क्षीरसागर के जल से कराया जाता है। आकर शुद्धि आदि पृथक् की जाती है।
प्रथम विधि के समान ही जन्म के मन्त्र, तप की विधि व ४८ संस्कार, अंकन्यास, तिलकदान, अधिवासना, स्वस्त्ययन, कंकणबंधन व मोचन, नेत्रोन्मीलन, केवलज्ञान के मन्त्र समान हैं। मृत्तिकानयन, अंकुरारोपण, भेरीताड़न (रात्रि में देवों का आह्वानन), जलयात्रा में जलदेवता (गंगा आदि) की पूजा, पंचामृताभिषेक, सचित्त पुष्प फलादि से पूजा, चतुर्णिकाय के देवताओं की पूजा व उनकी मूर्ति स्थापन, यागमंडल में विद्या देवता, जिनमाता, इन्द्र, यक्ष, शासनदेवता, द्वारपाल, दिक्पाल आदि की द्वितीय विधि में पूजा की जाती है।
मंगलाष्टक का विशिष्ट पद्य देव्योऽष्टौ च जयादिका द्विगुणिता विद्याधिका देवताः । श्री तीर्थंकर मातृकाश्च जनकाः यक्ष्यश्च यक्षेश्वराः ॥ द्वात्रिंशत्रिदशाधिकाः तिथिसुरा दिक्कन्यकाश्चाष्टधा ।
दिक्पाला दश चेत्यमी सुरगणाः कुर्वन्तु ते मंगलम् । उक्त पद्य में उल्लिखित देवताओं की प्रतिष्ठा में विघ्न निवारण हेतु पूजा की जाती है । अग्निपूर्वक शांति यज्ञ भी होते हैं। जल-होम प्रतिष्ठा में बताया है।
'श्री नेमिचन्द्र प्रतिष्ठा तिलक' के साथ 'श्री आशाधर प्रतिष्ठा सारोद्धार' का भी इस प्रतिष्ठा में उपयोग होता है, क्योंकि दोनों में क्रियाकांड संबंधी समानता है।
सहयोगी प्रतिष्ठाचार्यों के प्रति आज से सात दशक पूर्व की सामाजिक स्थिति का जब हम अवलोकन करते हैं, उस समय धार्मिक क्रियाकाण्ड ब्राह्मण पंडितों के हाथ में था । दिगम्बर मुनिराज और विद्वानों के दर्शन दुर्लभ थे । परमपूज्य [प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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