________________
धर्मत्वरिष्टसेनाद्याः शांति चक्रायुधादयः । स्वयम्भू प्रमुखाः कुन्थु कुर्भाधास्त्वर प्रभुं ॥५॥ मल्लि विशाल प्रमुखाः मालयाद्या मुनिसुव्रतम् । नमीशं सुप्रभासाधा वरदत्ताग्रतः सुराः ।।६।। नेमिं पार्श्व स्वयम्भवाद्या गौतमाद्याश्च सन्मतिम् ।
तेभ्यो गणधरेशेभ्यो दत्तोऽयं पुनातु नः ॥७॥ ॐ ह्रीं चतुःषष्ठि सद्धि प्राप्त गणधर चरणेभ्योऽर्घ्य निर्वपानीति स्वाहा । ____ अर्थ- वृषभदेव के वृषभसेन आदि गणधर हुये । अजितनाथ के सिंहसेन आदि, संभवनाथ के चारुसेन आदि, कपि लांछन अभिनंदन के वजनाभि आदि, सुमतिनाथ के चामर आदि, पद्मलांछन वाले पद्यप्रभ के वज्रचामर आदि, सुपार्श्वनाथ के बलपूर्वादि, चन्द्रप्रभ के दत्त आदि, पुष्पदंत के विदर्भ आदि, शीतलनाथ के अनगार आदि, श्रेयांसनाथ के कुन्थु आदि, बारहवें वासुपूज्य भगवान् के धर्म आदि, विमलनाथ के मेल आदि, चौदहवें अनंतनाथ के जयार्या आदि, धर्मनाथ के अरिष्टसेन आदि, शांतिनाथ के चक्रायुध आदि, कुन्थुनाथ के स्वयंभू आदि, अरहनाथ के कुमार्य आदि, मल्लिनाथ के विशाल आदि, मुनिसुव्रतनाथ के माली आदि, नमिनाथ के सुप्रभास आदि, नेमिनाथ के वरदत्त आदि, पार्श्वनाथ के स्वयंभू आदि, और महावीर तीर्थंकर के गौतमादि गणधर थे । उन गणधरों के लिए यह अर्घ्य दिया जाता है, वे हमें पवित्र करें।
षट्कोण चक्र निर्माण कराकर 'क्ष्मां, बीज लिखें । उस पर अहँ स्थापित करें। उसके दक्षिण या बायीं ओर ह्रीं तथा नीचे श्रीं स्थापित करें।
ॐ ह्रीं अहँ अ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचकाय झौं झौं स्वाहा । इसे दक्षिण से उत्तर तक वेष्टित करें। तिलकादि विधि पूर्ववत् करें ! इनकी पूजा करें। चारित्र भक्ति पाठ करें।
आचार्यादि पूजा ये येऽनगारा ऋषयो यतीन्द्राः मुनीश्वरा भव्यभवव्यतीताः ।
तेषां समेषां पदपंकजानि संपूजयामो गुणशीलसिद्ध्यै ॥१॥ ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनशानचारित्रपवित्रतरगात्रचतुरशीतिलक्षगणधरचरणा अत्रागच्छत अप्रागच्छत संवौषट् । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः। अत्र मम सठिनहिता भूत्वा रत्नत्रय विशुद्धिं कुरुत कुरुत वषट् ।
सुगंधिशीतलैः स्वच्छैः स्वादुभिर्विमलैर्जलैः ।
सार्धद्वीप द्वयातीतभवद्भव्य यतीन्यजे ॥१॥ ॐ ह्रीं गणधरचरणेभ्यो जलं।।
सार कर्पूर काश्मीरकलितैश्चंदनद्रवैः ।
सार्धद्वीप द्वयातीतभवद्भव्य यतीन्यजे ॥२।। ॐ हीं गणधरचरणेभ्यो चठदनं ।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
[२१५
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org