________________
श्री चतुर्विंशति तीर्थकर मन्दिर एवं भगवान् बाहुबलि प्रतिमा
श्री गोम्मटगिरि अतिशय क्षेत्र परिचय
श्री दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ गोम्मटगिरि का निर्माण परम पूज्य राष्ट्र-सन्त सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्यश्री विद्यानन्दजी के शुभाशीर्वाद एवं समस्त भारत तथा इन्दौर की समाज के तनमन-धन द्वारा पूर्ण सहयोग से जैनधर्म, दर्शन, साहित्य, संस्कृति तथा अहिंसक जीवन मूल्यों के प्रचारप्रसार के प्रेरणा केन्द्र, लोक-सेवा एवं आत्मोत्थान हेतु शान्तिपूर्ण जीवन-यापन की साधना-स्थली के रूप में हुआ है। वीर निर्वाण संवत् २५०७ (ईस्वी सन् १९८१) में यह टेकरी व भूखण्ड प्रसिद्ध समाजसेवी श्री बाबूलालजी पाटोदी को उनकी षष्ठि-पूर्ति के उपलक्ष्य में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुनसिंहजी द्वारा उपरोक्त ध्येय की पूर्ति हेतु दिगम्बर जैन समाज इन्दौर को प्रदान किया गया।
इस क्षेत्र के निर्माण की परिकल्पना स्वर्गीय श्री दुलीचन्दजी सेठी तथा श्री शान्तिलालजी पाटनी की थी। उन्होंने ही परम पूज्य मुनिश्री का शुभाशीर्वाद प्राप्त कर इस गिरि पर अपने संकल्प को मूर्तरूप देने हेतु श्री पाटोदीजी को प्रेरित किया था, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ भगवान् बाहुबलि की २१ फुट उन्नत मनोज्ञ प्रतिमा, उनके दोनों ओर वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों के शिखर संयुक्त जिनालय, चारित्र चक्रवर्ती श्री १०८ आचार्य शान्तिसागरजी की स्मृति में 'त्यागी ज्ञानोपासना मन्दिर'. सरस्वती भवन, त्यागी निवास. श्री आदिनाथ जिनालय एवं तलेटी में अतिथिगह, धर्मशाला, भोजनशाला इत्यादि के निर्माणपूर्वक विशाल रूप में फाल्गुन वदी १३, शनिवार, ८ मार्च १९८६ से फाल्गुन वदी ३ गुरुवार, १३ मार्च १९८६ तक जिनबिंब पंच कल्याणक महोत्सव एवं महामस्तकाभिषेक सम्पन्न हुआ। इसके पश्चात् यहाँ २४ चरण प्राचीन एवं अर्वाचीन दि. जैनाचार्यों के स्थापित हुए हैं। श्री आचार्य कुन्द कुन्द एवं श्री आचार्य शान्तिसागरजी के स्टेच्यू व चरण चिह्न भी स्थापित हुए। श्री मिश्रीलालजी गंगवाल की स्मृति में गंगवाल विद्या मन्दिर का संचालन हो रहा है। छोटी पहाड़ी पर नव निर्माण की योजना को मूर्त रूप दिया जायेगा। भोजनशाला चल रही है। उपनगर का निर्माण हो रहा है।
आधुनिक कोई-कोई प्रतिष्ठाचार्य किसी भी दम्पत्ति को भगवान् के माता-पिता बनाकर कार्य करने लगे हैं। यह प्रवृत्ति भी शास्त्रानुसार नहीं है। इसलिए जिनमातृस्थानापन्न जिनेशपेटिका रखनी चाहिये।
-प्रतिष्ठा-चन्द्रिका, रांची-बिहार, (पर्वृषण-२४८६) ।
(चौबीस)
JainEducation International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org