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ज्ञान कल्याणक कैवल्य सूचि शरसंख्यक वर्तिकाभिरारार्तिकं बहुलवाद्य निनाद पूर्वम् ।
श्रीमज्जिन प्रतिकृते शतयज्ञयज्वाचार्या विदध्युरमलं जयोघोषणाग्रम् ॥ समवशरण में मूलनायक प्रतिमा चतुर्मुख रूप में विराजमान कर मोक्षमार्ग यंत्र स्थापित करें।
जय जय ध्वनि, वाद्यघोष, प्रत्येक प्रतिमा के समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित कर अनंत दर्शन ज्ञान सुख वीर्य रूप अनन्त चतुष्ट्य, घातिक्षयजदश अतिशय स्थापन, समवशरण, अष्ट प्रातिहार्य स्थापन ।
निम्नलिखित अर्घ्य चढ़ावें ॐ ह्रीं अनंतज्ञानादिचतुष्ट्ययुक्तअर्हत् परमेष्ठिने अर्घ्यम् । ॐ ह्रीं केवलज्ञान संबंधिदशातिशय युक्त अर्हत् परमेष्ठिने अय॑म् । ॐ ह्रीं अष्टमहाप्रातिहार्य संयुक्ताय तीर्थंकर देवाय अय॑म् । ॐ ह्रीं देवोपुनीत चतुर्दशातिशय सम्पन्नाय अर्हत्तीर्थंकर देवाय अय॑म् ।
ज्ञान-कल्याणक की हिन्दी पूजा
गीता छन्द चौबीस जिनवर तीर्थकारी, ज्ञान कल्याणकं धरं । महिमा अपार प्रकाश जगमें, मोह मिथ्या तम हरं ॥ कीने बहुत भविजीव सुखिया, दुःखसागर उद्धरं ।
तिनकी चरण पूजा करें, तिन सम बने यह रुचि धरं ॥ ॐ हीं चतुर्विंशति जिनेन्द्रेभ्यो पुष्पांजलि क्षिपेत् । (पुष्प डालें)
छंद चामरा नीर ल्याय शीतलं महान मिष्टता धरे, गन्ध शुद्ध मेलिके पवित्र झारिका भरे ।
नाथ चौविसों महान् वर्तमान कालके, बोध उत्सवं क रूं प्रमाद सर्व टालके । ॐ ह्रीं ऋषभादि महावीरपर्यंत चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यो जठमजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्वेत चंदनं सुगंधयुक्त सार लायके, पात्रमें धराय शांतिकारणे चढ़ायके ।
नाथ चौविसों महान् वर्तमान कालके, बोध उत्सवं करूं प्रमाद सर्व टालके || ॐ ह्रीं ऋषभादि महावीरपर्यंत चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपानीति स्वाहा ।
तंदुलं भले सुश्वेत वर्ण दीर्घ लाइये, पाय गुण सु अक्षतं अतृप्तिता नशाइये ।
नाथ चौविसों महान् वर्तमान कालके, बोध उत्सवं क रूं प्रमाद सर्व टालके ॥ ॐ हीं ऋषभादि महावीरपर्यंत चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
वर्ण वर्ण पुष्प सार लाइये चुनायके, काम कष्ट नाश हेतु पूजिये स्वभाविके ।
नाथ चौविसों महान् वर्तमान कालके, बोध उत्सवं करूं प्रमाद सर्व टालके । ॐ हीं ऋषभादि महावीरपर्यंत चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यो कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । १९८]
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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