________________
गर्भ कल्याणक पूजा (हिन्दी)
नोट :- सामने विनायक यंत्र व चौवीसी मंडल स्थापित करें ।
स्थापना
छप्पय
रतनवृष्टि सो करत, धनद सुरपति आज्ञा सिर । मास अगाऊ षट् सो, अर नव मास लगा झिर ॥ जनक-सदन लछमी निधि सोहत, उपमा किन मति ? जननि सुपन लख विमल गरभमें आये श्रीपति ॥ इहि विधि अनन्त महिमा धरन, सुख- समुद्र आनंद करन । दुख हरन स्थापन कर भविक, मन वच तन पूजत चरन ॥
ॐ ह्रीं श्री वृषभादिवीरान्तचतुर्विंशतिजिनसमूह गर्भकल्याणक प्राप्त अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (इत्याह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तचतुर्विंशतिजिनसमूह गर्भकल्याणक प्राप्त अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः | (इति स्थापनम् )
ॐ ह्रीं श्री वृषभादिवीरान्त चतुर्विंशतिजिनसमूह गर्भकल्याणकप्राप्त अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (इति सन्निधीकरणम् )
अष्टक
गीतिका छन्द
शुचि कनक कुंभ लीयो सो भरकरि, नीर उज्ज्वल छानकैं । निरवारने तिरषा सु कारन, कुमति उर बिच भान | छप्पन सो देवी करत सेवा, सरस उत्सव ठानिकैं । हरषायकर जिनचरन पूजत, सरब आरत हानि ॥ १ ॥
ॐ ह्रीं श्री गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यो वृषभादिवीरान्तेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । शीतल सु चन्दन दुखनिकन्दन, मलयगिरि मनभावनो । केशर कपूर मिलाय श्रीजिनराज पूजन लावनो ॥ छप्पन सो देवी करत सेवा, सरस उत्सव ठानिकैं । हरषायकर जिनचरन पूजत, सरब आरत हानिकैं ||२||
ॐ ह्रीं श्री गर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यो वृषभादिवीरान्तेभ्यो संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
सुन्दर प्रकाश उजास अक्षत, चन्द्रज्योति प्रकाशते । मोती समान अखंड धोकर, पूँज पावत भाषते ॥ छप्पन सो देवी करत सेवा, सरस उत्सव ठानि । हरषायकर जिनचरन पूजत, सरब आरत हानिकैं ||३||
ॐ ह्रीं श्रीगर्भकल्याणकप्राप्तेभ्यो वृषभादिवीरान्तेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
[ प्रतिष्ठा-प्रदीप ]
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
[ १६१
www.jainelibrary.org