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________________ ४. कीर्ति देवी, नैऋत्य दिशा में, छड़ी हाथ में, (पूर्व मन्त्र नाम बदलकर स्थापित करें)। ५. बुद्धि देवी, पश्चिम दिशा में दर्पण हाथ में, (पूर्व मन्त्र नाम बदलकर स्थापित करें)। ६. लक्ष्मी देवी, वायव्य दिशा में, नंद्यावर्त हाथ में, (पूर्व मन्त्र नाम बदलकर स्थापित करें)। ७. शांति देवी, उत्तर दिशा में, सुप्रतिष्ठ (ठोणा) हाथ में (पूर्व मन्त्र नाम बदलकर स्थापित करें)। ८. पुष्टि देवी, ईशान दिशा में, कलश हाथ में, (पूर्व मन्त्र नाम बदलकर स्थापित करें)। ५६ कुमारिकायें तेरहवें रुचिकवर द्वीप में, रुचिकगिरि पर जो ८४ हजार योजन ऊँचा और ४२ हजार योजन चौड़ा है, निवास करने वाली ये भवनवासिनी कुमारिकायें माता की सेवा में उपस्थित होती हैं। ८ पूर्व दिशा की देवियाँ झारी लिये हुए। ८ दक्षिण दिशा की देवियाँ दर्पण लिये हुए। ८ पश्चिम दिशा की देवियाँ छत्र लिये हुए। ८ उत्तर दिशा की देवियाँ चमर लिये हुए। शेष विदिशा की देवियाँ जातकर्म करती हुई इन पर 'जिनमातरंपरिचरतपरिचरत' कहकर पुष्प क्षेपण करें। क्रमशः १६ स्वप्न दिखलावें। १. ऐरावत हाथी, २. सफेद वृषभ, ३. धवल सिंह, ४. सिंहासन पर लक्ष्मी को हाथी की सूंड द्वारा स्नान कराते हुए, ५. दो पुष्पमाला, ६. पूर्ण चन्द्र, ७. उदित सूर्य, ८. जल से पूर्ण दो कलश कमल-पत्र से ढके हुए, ९. दो मीन सरोवर में क्रीड़ा करती हुई, १०. कमल-हंसयुक्त सरोवर, ११. तरंगित सागर, १२. सुवर्ण सिंहासन, १३. रत्नमय स्वर्ग विमान, १४. पृथ्वी से उठता हुआ नागेन्द्र भवन, १५. रत्नराशि, १६. धूम रहित अग्नि। नोट:- एक पर्दा जिसमें माता शयन करती हुई, चारों ओर १६ स्वप्नों का बनाया जावे अथवा पृथक्पृथक् भी बनाये जा सकते हैं। नृत्य (गर्वा) का गीत टेबल पर मंजूषा स्थापित करें मात तोहि सेवके सुतृप्तिता हमें भई । राग द्वेष टार वीतराग बुद्धि परिणई ॥ तूं ही लोक मांहि श्रेष्ठ भार्या सुभाग है । इन्द्र तोरि भक्ति में प्रवीण किये राग है । धन्य धन्य हस्त यह सफल भयो आज ही। अंग अंग धन्य है कृतार्थ भये आज ही॥ धन्य धन्य देवि पुण्य आतमा विशाल हो । पुण्य का सुलाभ हो सुधर्म का प्रचार हो॥ १५४] [प्रतिष्ठा-प्रदीप] Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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