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________________ इस ग्रंथ की आवश्यकता प्रतिष्ठा प्रदीप के प्रकाशन की आवश्यकता इस हेतु है कि उपलब्ध प्रतिष्ठा ग्रंथों में से किसी में भी प्रतिष्ठा की सम्पूर्ण विधि नहीं है। यह प्रतिष्ठा प्रदीप' संग्रह ग्रंथ है, इसमें आचार्य जयसेन (वसुबिन्दु) के प्रतिष्ठाग्रंथ का अनुसरण किया गया है, किंतु उसमें मन्दिर, वेदी, कलश, ध्वजा, जलयात्रा संबंधी सम्पूर्ण क्रियायें व मन्त्र विधि एवं पूजन नहीं है। उसमें पंचकल्याणक पूजायें, तीर्थंकर, अर्हत्, चैत्य, समाधि भक्तियाँ व उनका उपयोग, सिद्ध एवं आचार्यादि व चरण प्रतिष्ठा विधि, पंचकल्याणक पूजायें, मन्त्र संस्कार में कंकण बंधन, प्राण प्रतिष्ठा, सूरिमन्त्र आदि विशिष्ट मन्त्र भी नहीं हैं। यह सब हम लोग अपनी गुरु परम्परा से संग्रहीत विधि द्वारा कराते रहते हैं, इसलिए क्रियाकाण्डों में भेद भी पाया जाता है जिनमें सुधार होना आवश्यक है। अ.भा.दि. जैन विद्वत् परिषद् की इन्दौर कार्यकारिणी के १७ अक्टूबर १९८७ को प्रतिष्ठा पाठ संबंधी प्रस्ताव द्वारा मुझे प्रोत्साहित करने पर बिना इच्छा के भी यह कार्य सम्पन्न हो गया है। श्रमण संस्कृति विद्यावर्द्धन ट्रस्ट, इन्दौर द्वारा प्रथम बार ३५ विद्वानों ने प्रतिष्ठा संबंधी शिविर में शिक्षण प्राप्त किया। दूसरी बार सुकलिया पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में २५ विद्वानों ने शिक्षण-प्रशिक्षण लिया। । बाबलालजी पाटोदी के संरक्षण, श्री कैलाशचन्दजी वेद इंजीनियर के मंत्रित्व एवं श्री कलीवाल के संयोजकत्व में संपन्न हआ। इस प्रतिष्ठा ग्रंथ के अंत में शिविर संबंधी चित्र भी प्रकाशित हैं। आमंत्रित विद्वानों को ट्रस्ट की ओर से आने-जाने का मार्ग-व्यय देते हुए भोजन एवं आवास तथा पाठ्य-ग्रंथ की निःशुल्क व्यवस्था रही। उक्त ट्रस्ट के संचालन में श्री सुरेशजी गंगवाल एवं कोषाध्यक्ष श्री शांतिलालजी दोशी का योगदान प्रमख रूप से है। मैंने श्री आशाधरजी, आचार्य वसुनन्दिजी एवं श्री नेमिचन्द्रदेव के प्रतिष्ठा पाठों का परिचय भी प्रस्तुत ग्रंथ में दिया है। उनमें भी कलश आदि प्रतिष्ठा संबंधी पूर्ण विधियाँ नहीं पायी जातीं, इन प्रतिष्ठा ग्रंथों से भी यथोचित सहायता लेनी पड़ी है। इस ग्रंथ की विशेषता यह भी है कि इसमें मण्डल विधान एवं यंत्रों के आवश्यक नक्शे भी दिये गये हैं तथा परम पूज्य आचार्यश्री विद्यानंदजी महाराज ने हमें प्रत्येक तीर्थंकर की प्रतिमा विराजमान करते समय उनके नीचे के पृथक्-पृथक् यंत्र तथा जिनाभिषेक व पूजा के अष्ट द्रव्यों की प्राचीनता के प्रमाण का दिग्दर्शन कराने की कृपा की है। श्री परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का भी शुभाशीर्वाद प्राप्त हुआ है। हम चाहते हैं कि इस प्रतिष्ठा प्रदीप के माध्यम से प्रतिष्ठा संबंधी विसंगतियाँ जैसे दक्षिणायन में प्रतिष्ठा मुहूर्त, आगम विरुद्ध भगवान् के माता-पिता बनाना आदि में नियन्त्रण हो सकेगा। इस प्रतिष्ठा ग्रंथ में हमारे वरिष्ठ विद्वान् श्री पं. जगन्मोहनलालजी शास्त्री एवं डॉ. पन्नालालजी साहित्याचार्य आदि का मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ है। वर्तमान ४-५ प्रसिद्ध प्रतिष्ठाचार्यों के अलावा कुछ ऐसे भी हैं, जो बिना प्रतिष्ठा विधि व मन्त्रसंस्कार के केवल णमोकार मन्त्र से प्रतिष्ठायें करा रहे हैं। वे जब मिलते हैं तब यह पूछते हैं कि हमें आप विधि, प्राण-प्रतिष्ठा व सूरिमन्त्र आदि बता देवें। इस प्रतिष्ठा पाठ से ऐसे लोगों को भी लाभ होगा। (पन्द्रह) ___ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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