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पुण्याहवाचन करें लक्ष्मीः पुष्पफलं यशः प्रविशदं नैरोग्यमायुर्धनम् । तेजः शौर्यमनेकधाम विपुलां विद्यां सुशास्त्रागमम् ।। तुंगाश्वेभरथौघपद्म निकरान् सद्गोत्रजन्मोर्जितम् । प्रासादः सुतरां ददातु सततं प्रासाद संकीरनीः ।।
इत्याशीर्वादः
मन्दिर एवं मानस्तंभ शुद्धि नोट-मंदिर-मानस्तंभ-गंधकुटी की शुद्धि के लिए चैत्य भक्ति पाठ पढ़कर एक लम्बा दर्पण रखकर उसमें मन्दिर या मानस्तंभ का प्रतिबिम्ब देखते हुए अभिषेक व पूजन इन्द्र-इन्द्राणियों द्वारा करावें। नीचे तपेला या परात रखें। इसके पहले अष्टकदल कमल मांड करके इन्द्र पूर्व से शुरू कर ८१ कलश स्थापित कर देवें।
इतने लघु कलश नहीं हों तो १० कलशों में जल भरकर क्रमशः मन्त्र बोलकर दर्पण में देखते हुए ८१ बार अभिषेक करा देवें।
८१ कलशों से शुद्धि ८१ कलशों के श्लोक और मन्त्र इस प्रकार हैं :
कुम्भमिन्द्राह्वयं दिव्यमिन्द्र शस्त्रसमप्रभम् ।
ऐन्द्रपुष्पैः समर्चामि नवार्हद्भवनोत्सवे ॥१॥ ॐ हीं इन्द्रकलशेन मन्दिर (मानस्तंभ...) शुद्धिं करोमीति स्वाहा ।
अग्निज्वालासमानाभमग्न्याख्यं बहुलाक्षतैः ।
पूजयामि जिनागारस्नानाय सुखहेतवे ||२|| ॐ हीं अग्निकलशेन मन्दिरशुद्धिं करोमीति स्वाहा ।
यमदण्डसमानाभमलौकिकमणिश्रितम् ।
यमाख्ययमदिक्पालमान्यं संचर्चयेऽनघम् ॥३|| ॐ हीं यमकलशेन मन्दिरशुद्धिं करोमीति स्वाहा।
नैऋत्याख्यं महाकुम्भं नैऋत्याधिपरक्षितम् ।
संशब्दये जिनागारं स्नानाय मधुरस्तवैः ।।४।। ॐ हीं नैत्रत्यकलशेन मन्दिरशुद्धिं करोमीति स्वाहा ।
वरुणाख्यं घटं दिव्यं वरुणासुर रक्षितम् ।
संशब्दये जिनेन्द्रस्य वेश्मस्नानाय चम्पकैः ॥५॥ ॐ हीं वरुणकलशेन मन्दिरशुद्धिं करोमीति स्वाहा ।
[प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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