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जिनेन्द्र भवन स्नपन एवं पूजन ॐ प्रबलतरोत्कृष्ट जठमांतर पुण्य पुण्यावलिलब्धात्यंत मानिर्मापितस्य पद्मरागाश्मगर्भवजवैडूर्य पदम रागेन्द्र नीलचन्द्र काठताश्म सूर्यकान्तोपल स्फटिक मणि निमापितोत्तुंग कूटस्य, नानाविध मणि निर्मित सोपान राजविराजितस्यवैनतेय गोपति रथांग नीलकण्ठ राजहंस मालांबर कमला चिह्न संशोभित ऊर्जस्वतरस्वतेजः समुद्यौतित दशदिग् विभागकनकाश्म जात स्वचित चाल चामीकर कुंभ श्रृंगस्य, मृगेन्द्र मातंगादि दशविध वैजयन्तिका विराजितस्य, कनक किंकणी नादबहुलीकृत स्थूलतर घंटानाद समाहत भट्यसमाहतस्य, विविध प्रकार भेरी पटह मृदंग कंसाल ताल डमरु डिडिम झर्झर वंश वीणा प्रमुख वाध निर्घोष दधिरीकृत सर्वलोकस्य, जय नन्द चिरंजीव वर्द्धस्वेति भटय मुखोत्पन्नस्तुतिपाठ समुद्भुत ध्वनि विशेष रागस्य, टयाकरण छन्दोलंकार साहित्य नाटक तर्कमीमांसा वेदान्त पातंजलि सांस्टय चार्वाक बौद्ध जैन समस्त शास्त्र पठन पाठन प्रवीणाचार्यवर्य टयास्टयानपूर्वक बोधित भटयजन निवास स्थलस्य, पंचविद्याशय निर्मितगगनलिहगोपुरोझासितस्य, मणिमुक्ताफल माला विराजित द्वार प्रदेश निवेशित चन्दनमालस्य काश्मीर चीनानेकदेशोद्भव बहुमूल्यक्षौम पट दुकूल कारापित नानालोक विराजितस्य, भागीरथी कालिन्दी सरस्वती गोदावरी नर्मदा सरोवापी कूप तडागायनेक जलाशय परागपुंज पिंजरित काश्मीर गंध सार कलापक घनसार सुगंधीकृत वारिपूर्णे कलशैः बुद्धिबलौषधि तपोरस विक्रिया क्षेत्र क्रियाधनेकर्द्धि मण्डित महर्षिवचनैरिवाभिषिक्तस्य मं वं इवीं क्ष्ची हं सः द्रां द्रीं क्लीं लूं सः अमृतश्राविणि श्रावय श्रावय सर्वकलुषापनोदिनि कलुषं स्फोटय स्फोटय ॐ ॐ ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हं सः अमृतं वर्षय वर्षय जिनेन्द्र भवनस्य मानस्तंभस्यवा नपानं करोमीति स्वाहा।
(जलधारा) धन्योऽयं सर्वसंघः धन्यास्ते वीतरागाः । धन्याजिनवाणी धन्यं शासनं धन्यं पावनं कार्यम् धन्या जिनभवन निर्मातारः धन्या सर्वे आचार्याः
धन्याः प्रेक्षकाः सर्वेभक्ताः।
(पुष्पांजलिः) क्षीरोदनीर निकरै घनसार मित्रैः शृंगार नालिमुख निर्गत दिव्य धारैः ।
प्रोत्तुंग श्रृंग विनिवेशित हेमकुंभ- प्रासादमाहत महं विधिनार्चयामि ॥१॥ ॐ ह्रीं जिन प्रासादाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
काश्मीर पंक निवहैर्हिमवालुकाढ्यैः । सद्गन्धसार सुभगैर्भमरावलीद्वैः ॥
प्रोत्तुंग श्रृंग विनिवेशित हेमकुंभ- प्रासादमाहत महं विधिनार्चयामि ॥२॥ ॐ ह्रीं जिन प्रासादाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । [प्रतिष्ठा-प्रदीप]
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