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________________ उपासक पाठक शिवलक्षससप्ततिसहस्रपदभंगं । व्रतशीलाधानादि क्रियाप्रवीणं यजामि सलिलाद्यैः ।।१७४।। भाषा- व्रत सुशील क्रिया गुण श्रावका, पद सुलक्ष इग्यारह धारका। सहस सप्तति और मिलाईये, जजू पाठक ज्ञान बढ़ाईये ।। ॐ ह्रीं एकादशलक्षसप्ततिसहप्रपदशोभितोपासकाध्यनांग धारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अर्घ्यम् निर्व. स्वाहा । अंतकृदंगं दश दश साधुजनोपसर्ग कथकमधितीर्थम् । तेषां निःश्रेयसलंभनमपि गणधरपठितं यजामि मुदा ॥१७५।। भाषा- दश यती उपसर्ग सहन करे, समय तीर्थंकर शिवतिय वरे । सहस अठाइस लख तेइसा, पद यजूं पाठक जिन सारिसा ।। ॐ ह्रीं त्रिविंशतिलक्षाष्टविंशतिसहापदशोभितांतकृतदशांग धारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अर्घ्यम् निर्व, स्वाहा । उपपादानुत्तरकं द्विचत्वारिंशल्लक्षसहस्रपदं । विजयादिषु नियमेन मुनिगतिकथकं यजामि महनीयं ॥१७६।। भाषा- दश यती उपसर्ग सहन करे, समय तीर्थ अनुत्तर अवतरे | सहस चव चालिस लख बानवे, पद धरे पाठक बहुज्ञान दे । ॐ ह्रीं द्विनवतिलक्षचतुश्चत्वारिंशत्पदशोभितानुत्तरोपपादिकांग धारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। प्रश्नव्याकरणांगं त्रिनवतिलक्षाधिषोडशसहस्रपदं । नष्टोद्दिष्टंसुखलाभगतिभाविकथं पूजये चरुफलाद्यैः ।।१७७।। भाषा- प्रश्न व्याकरणांग महान ये, सहस सोलह लाख तिरानवे | पद धरे सुख दुःख विचारता, जजू पाठक धर्म प्रचारता ॥ ॐ हीं ब्रिनवतिलक्षषोडशसहापदशोभितप्रश्नव्याकरणांग धारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अर्घ्यम् निर्व. स्वाहा । अंगे विपाकसूत्रं कोट्येकचतुरशीतिसहसपदं । कर्मोदयसत्त्वानानोदीर्णादिकथं यजनभागतोऽर्चामि ||१७८।। भाषा- सहस चवरसि कोटी एक पद, धरत सूत्रविपाक सुज्ञान प्रद । करम-बंध उदय सत्त्वादि कथ, जजू पाठक निज रुचि ठानकर ।। ॐ हीं एककोटिचतुरशीतिसहनपदशोभितविपाकसूत्रांग धारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अय॑म् निर्व. स्वाहा । उत्पाद पूर्वकोटीपद पद्धति जीव मुखषट्कं । निजनिज स्वभावघटितं कथयत्प्रांचामि भक्तिभरः ॥१७९।। भाषा- सुनय दुर्नय आदि प्रमाणता, नवति छः कोटी पद धारता । पूर्व अग्रायण विस्तार है, जजू पाठक निज रुचि ठानकर ॥ ॐ हीं उत्पादपूर्वधारकोपाध्यायपरमेष्ठिने अर्घ्यम् निर्वपानीति स्वाहा। अग्रायणीयपूर्वषण्णवतिकोटिपदं तु यत्र तत्त्वकथा । सुनयदुपर्णयतत्स्वप्रामाण्यप्ररूपकं प्रयजे ॥१८०॥ प्रय [प्रतिष्ठा-प्रदीप] _Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002630
Book TitlePratishtha Pradip Digambar Pratishtha Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1988
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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