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१७ ऋषिदत्ताकथानकम् ॥ १८ कुमारपालपूर्व भवप्र० ॥
१७ ॥
१८ ॥
१९ मोरनागप्रबंधः ॥ १८* ॥ २० मदनब्रह्मजयसिंहदेवप्रीतिप्रबंधः ॥ १९ ॥
२१ श्रीमाताप्रबंधः ॥ २० ॥
२२ विमलवसतिका प्रबंधः ॥ २१ ॥
२३ लूणिगवसहीप्रबंधः ॥ २२ ॥
२४ भोज - गांगेयप्रबंधः [ ॥ २३ ॥ ] २५ भोजदेव - सुभद्राप्रबंधः ॥ २४ ॥
२६ धाराध्वंसप्रबंधः ॥ २५ ॥ २७ सिद्धराजौदार्यप्रबंध ः ' ।
२८ देव्यम्बाप्रबंधः ॥ २५ ॥ २९ विक्रमार्कसत्त्वप्रबंधः ॥ २६ ॥
३० दरिद्रक्रय प्रबंधः ॥ २७° ॥ ३१ वीकमद्यूतकार प्रबंधः ॥ २७ ॥ ३२ स्त्रीसाहसप्रबंधः ॥ २८ ॥
३३ मनिमनुप्रबंधः ॥ २९ ॥ ३४ देहलक्षणप्रबंधः ॥ ३० ॥
प्रास्ताविक वक्तव्य |
| प्रा० स०
१४... २... ५ १६...२...१२
९ प्रा० १६...२... १३ १७... २... २
स०
( प्रा०
स०
प्रा०
स०
। प्रा० स०
[ प्रा० स०
प्रा०
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स०
प्रा०
। स०
[ प्रा० स० १ प्रा० ( स०
प्रा० (स०
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( स० प्रा०
[ स०
९ प्रा०
स० | प्रा०
स०
SSTO स० | प्रा० [ स०
J प्रा०
१७... २... ३
१७...२... ६
१७...२... ६
१८...२... ११
१८.२...१२ १९... १... १४
१९...१...१५ २०...१... ६
२०...१... ६
२०...२... १
२०...२... १ २०...२...१२
२०...२...१२
२१...१... ५
२१...१... ५
२१...२... ११
२१...२...११ २२...१.१
२२...१... २ २२...१... ९
२२...१.१० २३...१... ७
२३...१... ७
२३...२... २
२३...२... २
२४...१... ९
28...9... S २४...२... ५ २४...२... ६ २४...२...११ २४...२...११
स० २५...१... २
•
२८
१५
३८
३३
३४
११
१२
१३
१४
४८
***
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33
33
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M
35
९८६
६५१-९५२
६ १९६
१११२-११३
६११४
६ ३४
९ ३५
६४७-४८
१४९-५०
C
5 इसका क्रमांक भी गलती से ' ॥ २५ ॥' दिया गया है । ऊपर धाराध्वंसप्रबंधका भी यही अंक है ।
६२२०
११-३
६४
१५
९५
६९
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०
6 इन दोनों प्रबंधों का भी क्रमांक एक-सा ॥ २७ ॥ २७ ॥' लिखा हुआ है।
7 इस प्रबन्धके बाद वे दो पंक्तियां लिखी हुई हैं जो प्रस्तुत संग्रहके पृष्ठ ५ पर, प्रकरण १० वेंमें मुद्रित की हुई हैं ।
१३
2 यह प्रबन्ध भी अनैतिहासिक होनेसे, इसको चालू क्रम में मुद्रित न कर, ऊपरके प्रकरणके साथ, परिशिष्टके रूपमें दे दिया है
* प्रतिमें इस प्रबंधका क्रमांक भी, गलती से १८ ही दिया गया है। 3 प्रतिमें प्रबंधका कोई नामाभिधान नहीं दिया गया है । सिर्फ अंतमें ' ॥
इस प्रबंधका क्रमांक प्रति में लिखना रह गया है । २४ ॥' ऐसा क्रमांक लिखा हुआ है ।
४४
२४-२५
1 यह कथानक पौराणिक ढंगका है। इसकी कथावस्तुका प्रस्तुत संग्रहके विषय के साथ किसी प्रकारका संबंध न होनेसे, हमने इसको संग्रहके अंतर्भूत न रख कर, पृथकू परिशिष्टके रूपमें इसी प्रस्ताबनाके अन्तमें मुद्रित कर दिया है ।
८४
५१-५२
५२-३
२०
२०
२३-२४
२४
९७-९८
१-२
२
३
३-४
4 प्रतिमें इस प्रबंधका भी कोई नाम निर्दिष्ट नहीं किया गया; और न स्वतंत्र प्रबन्धका सूचक क्रमांक ही दिया गया है । इससे प्रतिके लेखानुसार, यह प्रकरण, इसके पूर्वके धाराध्वंस प्रबंधके परिशिष्टके जैसा मालूम देता है ।
४-५
** विक्रमार्क राजाके विषयके जितने प्रकरण हैं उन सबको हमने "विक्रमार्कप्रबन्धाः " इस नाम के एक ही मुख्य शिरोलेखके नीचे
दे दिये हैं ।
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