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. जैनागम दिग्दर्शन
शब्दावली है, जिसके द्वारा संक्षेप में विस्तृत और गहन अर्थ व्याख्यात किया जा सकता है। उसकी विवेचन-सरणि में प्रभावापन्नता और गम्भीरता है। सूक्ष्म और पारिभाषिक (Technical) विश्लेषण की दष्टि से उसकी अपनी असामान्य क्षमता है। चूर्णिकार द्वारा भाषात्मक माध्यम के रूप में प्राकृत के साथ-साथ संस्कृत संयोजन के पीछे सम्भवतः इसी प्रकार का दृष्टिकोण रहा हो, अर्थात् संस्कृत को इन विशेषताओं से लाभान्वित क्यों न हुआ जाए?
चूणियों में किया गया प्राकृत-संस्कृत का मिश्रित प्रयोग ‘मगिप्रवाल-न्याय' से उपमित किया गया है। मणियों और मूगों को एक साथ मिला दिया जाये, तो भी वे पृथक्-पृथक् स्पष्ट दीखते रहते हैं। यही स्थिति यहाँ दोनों भाषाओं की है। प्राकृत को प्रधानता
___चूणियों में संस्कृत और प्राकृत का सम्मिलित प्रयोग तो हुआ, फिर भी उनमें प्रधानता प्राकृत की रही। चूणियों में यथा-प्रसंग अनेक प्राकृत-कथाएं दी गयी हैं, जो धार्मिक, सामाजिक, किंवा लौकिक जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बद्ध हैं। चूर्णिकार को जो शब्द विशेष व्याख्येय या विश्लेष्य लगे हैं, उनकी व्युत्पत्ति भी प्रायः प्राकृत में ही प्रस्तुत की गयी है।
वर्ण्य विषय के समर्थन तथा परिपुष्टता के हेतु स्थान-स्थान पर प्राकृत व संस्कृत के विभिन्न विषयों से सम्बद्ध पद्य उद्धत किये गये हैं। प्राकृत भाषा की क्षमता, अभिव्यंजना-शक्ति, प्रवाहशोलता, लोक-जनीनता आदि के साथ भाषा-शास्त्रीय दृष्टि से चणियों के अध्ययन की वास्तव में अत्यधिक उपयोगिता है। चूणियां : रचनाकार
आचारांग, सूत्रकृतांग, व्याख्या-प्रज्ञप्ति, वृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ, पंचकल्प, दशाश्रुतस्कन्ध, जीतकल्प, जीवाभिगम, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक, नन्दी तथा अनुयोगद्वार पर चूणियों की रचना हुई है।
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