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श्रागमों पर व्याख्या - साहित्य
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हुआ, उससे पूर्व ही नियुक्तियों की रचना प्रारम्भ हो गयी थी । प्रमुख नैयायिक द्वादशार-नय-चक्र के रचयिता श्राचार्य मल्लवादी ने अपनी रचना में नियुक्ति -गाथा उद्धृत की है, जिससे मल्लवादी से पूर्व नियुक्तियों का रचा जाना प्रमाणित होता है। मल्लवादी का समय विक्रम का पंचम शतक माना जाता है ।
नियुक्तियां : रचनाकार
१. आचारांग, २. सूत्रकृतांग, ३. सूर्यप्रज्ञप्ति, ४. व्यवहार, ५. कल्प, ६. दशाश्रुतस्कन्ध, ७. उत्तराध्ययन, ८. श्रावश्यक, ६. दशवैकालिक, १०. ऋषिभाषित; इन दश सूत्रों पर नियुक्तियों की रचना की गयी है । सूर्यप्रज्ञप्ति तथा ऋषिभाषित की नियुक्तियां प्राप्य हैं । नियुक्तिकार के रूप में प्राचार्य भद्रबाहु का नाम प्रसिद्ध है | पर, श्रुतकेवली ( अन्तिम चतुर्दश पूर्वघर) प्राचार्य भद्रबाहु जिन्होंने छेदसूत्रों की रचना की और नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु एक नहीं हैं । बहुत बड़ी कठिनाई यह प्राती है कि अनेक आागमों पर रचित नियुक्ति तथा भाष्य की गाथाएं स्थान-स्थान पर एक-दूसरे से इतनी मिल गयी हैं कि उन्हें पृथक् कर पाना दुःशक्य है । चूर्णिकार भी वैसा नहीं कर पाये ।
नियुक्तियों में प्रसंगोपात्त जैनों के परम्परा प्राप्त प्रचारविचार, जैन तत्व- ज्ञान के अनेक विषय, अनेक पौराणिक परम्पराएं, ऐतिहासिक घटनाएँ ( अंशतः ऐतिहासिक, अंशतः पौराणिक), इस प्रकार की विमिश्रित मान्यताएं वर्णित हुई हैं। जैन संस्कृति, जीवनव्यवहार तथा चिन्तन क्रम के अध्ययन की दृष्टि से नियुक्तियों का महत्व है । नियुक्तियों में विशेषतः अर्द्ध - मागधी प्राकृत का व्यवहार हुआ है । प्राकृत की भाषा - शास्त्रीय गवेषणा के सन्दर्भ में भी ये विशेषतः अध्येतव्य हैं ।
मास (माध्य)
आगमों के तात्पर्य को और अधिक स्पष्ट करने के हेतु भाष्यों की रचना हुई । इनकी रचना - शैली भी लगभग वैसी है, जैसी निर्यु - क्तियों की । ये प्राकृत-गाथाओं में लिखे गये हैं। नियुक्तियों की तरह
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