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________________ १८० नागम दिग्दर्शन __मानसिक स्थिरता, आत्मोन्मुखता, शुद्ध चिन्तनपूर्वक देहासक्तिवजित मरण समाधि-मरण है। वहां खान-पान आदि सब कुछ सहज भाव से परित्यक्त हो जाते हैं। साधक प्रात्म-अनात्म के भेद-विज्ञान की कोटि में पहुंचने लगता है। ऐसी अन्तः-स्थिति उत्पन्न हो, जीवन में यथार्थगामिता व्याप्त हो जाए, एतदर्थ चिन्तनशील मनीषियों ने कुछ व्यवस्थित विधि-क्रम दिये हैं, जो न केवल शास्त्रानुशीलन, अपितु उनके जीवन-सत्य के साक्षात्कार से प्रसूत हैं। इस प्रकीर्णक में समाधि-मरण उसके भेद आदि का इसी परिप्रेक्ष्य में तात्विक एवं विशद विवेचन है। कलेवर : विषय-वस्तु प्रस्तुत प्रकीर्णक छः सौ तिरेसठ गाथाओं का शब्द-कलेवर लिये हुए है । परिमाण में दशों प्रकीर्णक ग्रन्थों में यह सब से वृहत् है। वर्ण्य-विषय से सम्बद्ध भक्त-परिज्ञा, पातुर-प्रत्याख्यान, महा-प्रत्याख्यान, मरण-विभक्ति, मरण-विशोधि, आराधना प्रभृति अनेक-विध श्रुतसमुदय के आधार पर इस प्रकीर्णक का सर्जन हुआ है। गरु और शिष्य के संवाद के साथ इस ग्रन्थ का प्रारम्भ होता है। शिष्य को समाधि-मरण के सम्बन्ध में जिज्ञासा होती है । गुरु उसके समाधान में आराधना, आलोचना, संलेखना, उत्सर्ग, अवकाश, संस्तारक, निसर्ग, पादपोपगमन आदि चौदह द्वारों के माध्यम से समाधि-मरण का विस्तृत विश्लेषण करते हैं। अनशन-तप की व्याख्या, संलेखना-विधि, पण्डित-मरण के स्वरूप आदि का इस प्रकीर्णक में समावेश है, जो प्रात्म-साधकों के लिए केवल पठनीय ही नहीं, आन्तरिक दृष्टि से भी विचारणीय है। प्रासंगिक रूप में इसमें उन महापुरुषों के दृष्टान्त उपस्थित किये गये हैं, जिन्होंने परीषहों को समभाव से सहते हुए पादपोपगमन आदि तप द्वारा सिद्धि प्राप्त की। धर्म-तत्त्वोपदेश के सन्दर्भ में और भी अनेक दृष्टान्त उपस्थित किये गये हैं । बारह भावनाओं के विवेचन के साथ यह प्रकीर्णक समाप्त होता है। ___ दश प्रकीर्णकों पर यह संक्षिप्त ऊहापोह है। इनके अतिरिक्त और भी कतिपय प्रकीर्णक हैं, जिनमें ऋषि-भाषित, तीर्थोद्गार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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