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________________ जैनागम दिग्दर्शन औपपातिक सूत्र का प्रसंग है : "तब भगवान् महावीर अनेकविध परिषद्-परिवृत (श्रेणिक) बिम्बिसार के पुत्र कूणिक (अजातशत्रु) के समक्ष शरद् ऋतु के नव स्तनित-नूतन मेघ के गर्जन के समान मधुर तथा गम्भीर, क्रौंच पक्षी के घोष के समान मुखर, दुन्दुभि की ध्वनि की तरह हृद्य वाणी से, जो हृदय में विस्तार पाती हुई, कण्ठ में वर्तुलित होती हुई तथा मस्तक में प्राकीर्ण होती हुई व्यक्त, पृथक्-पृथक् स्पष्ट अक्षरों में उच्चारित, मम्मणा - अव्यक्त वचनता-रहित, सर्वाक्षर-समन्वययुक्त, पुण्यानुरक्त, सर्वभाषानुगामिनी, योजनपर्यन्त श्रयमाण अर्द्ध मागधी भाषा में बोलते हैं, धर्म का परिकथन करते हैं। वह अर्द्ध मागधी भाषा उन आर्यों, अनार्यों की अपनी-अपनी भाषाओं में परिणत हो जाती है।" प्राचार्य हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन के मंगलाचरण में जैनी वाक् अर्द्ध मागधी भाषा के रूप में व्याख्या करते हुए 'सर्व भाषापरिणताम्' पद से प्रशस्तता प्रकट की है। अलंकारतिलक के रचयिता वाग्भट ने भी उसी प्रकार सर्वज्ञाश्रित अर्द्ध मागधी भाषा की स्तवना करते हुए भाव व्यक्त किये हैं : "हम उस अर्द्ध मागधी भाषा का प्रादरपूर्वक ध्यान, स्तवन करते हैं, जो सब की है, सर्वज्ञों द्वारा व्यवहृत है, समग्र भाषाओं में परिणत होने वाली है, सार्वजनीन है, सब भाषाओं का स्रोत है।"२ __ भाषा-प्रयोग को अनेक विधाएं होती हैं। जहाँ श्रद्धा, प्रशस्ति १. समणे भगवं महावीरे कोरिणयस्स रण्णो भंभासार पुत्तस्स मारदनवत्थ रिणय-महुरगभीर कोचणिग्योसदुंदुभिस्सरे उवेवीत्थडाए कंठे वट्ठियाए सिरे समाइगाए अगिलाए अमम्मरणाए सवक्खरसणिवाईयाए पुणरत्ताए सव्वभासारणुगामणिए सरस्सईए जोयरमणहारिणासरेणं अद्धमागहाए भासाए भासंति अरिहा धम्म परिकहेंति तेसिं सव्वेसिं पारियमणारियाण प्रगिलाए धम्म-माइक्खंति सा वि य णं अद्धमागहा भासा तेसि सव्वेसि प्रारियमणारियाणं प्रप्पणो सभासाए परिणमंति । - प्रोपपातिक सूत्र ; पृ. ११७, ११८ २. सर्वार्धमागधीं सर्वभाषासु परिणामिनीम् । सार्वीयां सर्वतो वाचं सार्वज्ञी प्ररिणदध्महे ॥ - अलंकार - तिलक १, १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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