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________________ १५४ जैनागम दिग्दर्शन श्रमण को जो अवधिज्ञान होता है, वह क्षायोपशमिक अवधिज्ञान होता है। संक्षेप में यह छः प्रकार का है : १. आनुगामिक, २. अनानुगामिक, ३. वर्धमानक, ४. होयमानक, ५. प्रतिपातिक, ६. अप्रतिपातिक । अनुगामिक अवधिज्ञान दो प्रकार का है : १. अन्तगत और २. मध्यगत । अन्तगन्त अनुगामिक अवधिज्ञान तीन प्रकार का है : १. पुरतः अन्तगत, २. मार्गतः अन्तगत और ३ पार्श्वतः अन्तगत । कोई व्यक्ति उल्का-दीपिका, चटुली-पर्यन्त ज्वलित तृणपूलिका, अलात-तृणाग्रवर्ती अग्नि, मणि, प्रदीप अथवा अन्य किसी प्रकार की ज्योति को अग्रवर्ती रखकर अपने पथ पर बढ़ता चला जाता है, वह पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान कहलाता है। उल्का, दीपिका आदि को पृष्ठवर्ती रखकर साथ लिये जिस प्रकार कोई व्यक्ति चलता जाता है, उसी प्रकार पृष्ठवर्ती भाग को पालोकित करने वाला ज्ञान मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान कहलाता है। दीपिका आदि प्रकाश साधनों को जिस प्रकार कोई व्यक्ति पार्श्व में स्थापित कर चलता है, उसी प्रकार पाव स्थित पदार्थों को प्रकाशित करता हुमा साथ-साथ चलने वाला ज्ञान पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान कहलाता है। जिस प्रकार कोई पुरुष उल्का आदि प्रकाशकारी पदार्थों को मस्तक पर रखकर चलता जाता है, उसी प्रकार जो अवधिज्ञान चारों ओर के पदार्थों का ज्ञान कराते हुए ज्ञाता के साथ-साथ चलता है, वह मध्यगत प्रानुगामिक अवधिज्ञान है । अन्तगत और मध्यगत अवधि में क्या विशेषता है. ? पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान से संख्येय तथा असंख्येय योजन आगे के पदार्थ ही जाने व देखे जाते हैं (जाणइ पासइ), मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान से संख्येय तथा असंख्यय योजन पीछे के पदार्थ ही जाने व देखे जाते हैं । पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान से दोनों पाश्वों में रहे हुए संख्येय तथा असंख्येय योजन तक के पदार्थ ही जाने व देखे जाते हैं, किन्तु मध्यगत अवधिज्ञान से सभी ओर के संख्येय तथा असंख्येय योजन के बीच में रहे हए पदार्थ जाने व देखे जाते हैं । यही अन्तगत अवधि और मध्यगत अवधि में विशेषता है। अनानुगामिक अवधिज्ञान का स्वरूप बताते हुए सूत्रकार कहते हैं कि जैसे कोई पुरुष एक बड़े अग्नि स्थल में अग्नि जलाकर उसी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002628
Book TitleJainagama Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni, Mahendramuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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