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विषयानुक्रम
1-42
प्रागम विचार
धर्मदेशना 1, अत्थागम : सुत्तागम 3, ग्यारह गणधर : नौ गण 4, श्रुत संकलन 5, श्रुत : कण्ठाग्र :अपरिवर्त्य 6, श्रुत का उद्भव 11, पुष्पमाला की तरह सूत्रमाला का ग्रथन 14, अर्थ को अनभिलाप्यता 16, मातृका पद 16, पूर्वात्मक ज्ञान और द्वादशांग 17, द्वादशांगी से पूर्व पूर्व-रचना 18, वृष्टिवाद में पूर्वो का समावेश 19, पूर्व - रचना : काल तारतम्य 19 पूर्व वाङमय की भाषा 20, पूर्वगत : एक परिचय 22, चूलिकाएं 24, चुलिकाओं की संख्या 25, वस्तु वाङ्मय 25, पूर्वविच्छेद काल 26. अनुयोग का अर्थ 26, आर्य रक्षित द्वारा विभाजन 28, प्रागमों की प्रथम वाचना 29, भद्रबाहु द्वारा पूर्वो की वाचना 31, प्रथम वाचना के अध्यक्ष एवं निर्देशक 32, द्वितीय वाचना - माथुरी वाचना 32, वाल भी वाचना 34, एक ही समय में दो वाचनाएँ ? 34, तृतीय वाचना 35, अग-प्रविष्ट तथा अंग-बाह्य 37, मलघारी हेमचन्द्र द्वारा व्याख्या 38, प्रा० मलयगिरि की व्याख्या 38, अंग-प्रविष्ट : अंग-बाह्य : सम्यक्ता 40, गृहीता का वैशिष्ट्य 41।
पैंतालीस आगम
43-181 अग-संज्ञा क्यों ? 43 द्वादशांग -43 - 78 (1) आयारांग 43, द्वितीय श्रुतस्कन्ध : रचना : कले- .
वर 44, दर्शन 45, व्याख्या-साहित्य 48.
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