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जैनागम दिग्दर्शन
मायक), कौटुम्बिक (अनेक कुटुम्बों के आश्रयदाता, राजसेवक), इभ्य (प्रचुर धन के स्वामी), श्रेष्ठी (जिनके मस्तक पर देवता की मूर्ति सहित सुवर्ण पट्ट बंधा हो), सेनापति, सार्थवाह (सार्थ का नेता)।
दास-दास (अामरण दास ), प्रेष्य (जो किसी काम के लिए भेजे जा सके), शिष्य, भृतक (जो वेतन लेकर काम करते हों), भाइल्लग (भागीदार), कर्मकर।
त्यौहार-आवाह (विवाह के पूर्व ताम्बूल इत्यादि देना), विवाह, यज्ञ (प्रतिदिन इष्ट देवता की पूजा ), श्राद्ध, थालीपाक (गृहस्थ का धार्मिक कृत्य), चेलोपनयन, (मुण्डन), सीमंतोन्नयन (गर्भ स्थापना), मृतपिंडनिवेदन ।
उत्सव-इन्द्रमह, स्कन्दमह, रुद्रमह, शिवमह, वैश्रमणमह, मुकुन्दमह, नागमह, यक्षमह, भूतमह, कूपमह, तडागमह, नदीमह, ह्रदमह, पर्वतमह, वृक्षारोपणमह, चैत्यमह, स्तुपमह ।
नट-नट (बाजीगर), नर्तक, मल्ल (पहलवान), मौष्टिक (मुष्टि युद्ध करने वाले), विडम्बक ( विदूषक ), कहग ( कथाकार ), प्लवग (कूदने-फांदने वाले), आख्यायक, लाक्षक (रास गाने वाले), लंख (बांस के उपर चढ़कर खेल करने वाले), मंख (चित्र दिखाकर भिक्षा मांगने वाले), तण बजाने बाले, वीणा बजाने वाले, कावण (बहंगी ले जाने वाले), मागध, जल्ल (रस्सी पर खेल करने वाले) ।
यान-शकट, रथ, यान (गाड़ी), जुग्ग (गोल्ल देश में प्रसिद्ध दो हाथ प्रमाण चौकोर वेदी से युक्त पालकी, जिसे दो यादमी ढोकर ले जाते हों), गिल्ली (हाथी के उपर की अम्बारी, जिसमें बैठने से आदमी दिखाई नहीं देता), थिल्ली (लाट देश में घोड़े के जीन को थिल्ली कहते हैं, कहीं दो खच्चरों की गाड़ी को थिल्ली कहा जाता है), शिविका (शिखर के आकार की ढकी हुई पालकी), स्यन्दमानी (पुरुष प्रमाण लम्बी पालकी)। व्याख्या साहित्य
आचार्य मलयगिरि ने इस पर टीका की रचना की। उन्होंने इस उपाँग के अनेक स्थानों पर वाचना-भेद होने का उल्लेख किया
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