________________
अनेकजैनपूर्वाचार्यविरचितः
स्तोत्रसमुच्चयः ।
जैनाचार्य - न्यायाम्भोनिधि
श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वरचरणारविन्दसमाराधक
दक्षिणविहारि श्रीमदमरविजय मुनिपुङ्गवशिष्याणुना श्रीचतुरविजयमुनिना ।
संपादितः संस्कृतश्च ।
दक्षिण विहारि श्रीमद्राजविजयमुनिवरादेशेन
मुम्बय्यां पाण्डुरङ्ग जावजी
इत्येतैः स्वीये निर्णयसागर मुद्रणयन्त्रालये
मुद्रयित्वा प्राकाश्यमानीतः ।
Jain Education International
संवत् १९८४.
सन १९२८.
नम्र सूचन
इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org