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________________ दे. ला. सुरत मुद्रित कल्पमत्र, सुखबोधिका; आ. स. भावनगर मुद्रित कल्पकिरणावली, सुखबोधिका; भी० मा बंबई मुद्रित कल्पसूत्र; श्रीचारित्रदिजय जर्जा के ज्ञानभन्डार का सचित्र हस्तलिग्वित कल्पसूत्र तथा हर्मन जेकोबी द्वारा मुद्रित कल्पसूत्र से इस थरावली का संशोधन किया है। अन्यकर्ता का परिचय इस ग्रन्थ के पृ. ४४ में दिया है। (२) नंदी सूत्र पट्टावली (प्राकृत)-नंदीसूत्र के कर्ता श्री देवधिंगणिचमाश्रमण ने भगवान महावीर से प्रारंभकर अपने समर तक के वाचनाचार्यो की नामावली नंदीसूत्र के प्रारंभ में दी है। जिसका रचना काल दी. नि० सं० १८० है। प्र० स० सुरत मुद्रित श्री नंदीसूत्र तथा डेला के उपाश्रय अहमदाबाद की हस्तलिखित व. डा० नं. १४ नं० ४१ की ५३ पत्र वाली प्रति में उपलब्ध श्री श्रावश्यक नियुक्ति के प्रादि-मंगल पाठ से यह पट्टावली उद्धृत की गई है। था हस्तलिखित प्रति से उपलब्ध अधिक गाथाएँ किट-( )- में दी गई हैं। . (३) दुसमाकालसमणसंघथयं (प्राकृत)--इस ग्रन्थ में वाचकवंश के प्राचार्यों की नामावली है। श्रीधर्मवोपसूर ने तेरहवीं शताब्दि में इसकी रचना की । यह स्तोत्र वि० ध० ल० ज्ञाअागरा से अशुद्ध एवं अपूर्ण प्राप्त हुअा था, जिसे अवचूरी के अाधार पर यथाशक्य शुद्ध करके मुद्रित किया है। पश्चात् पू० पा० प्रवर्तक श्री कांतिविजय जी महाराज से प्राप्त प्रति के शुद्ध पाठ को भी संयोजित कर दिया है । ग्रन्थकर्ता का परिचय पृ० २८ व १० में दिया है। (४) श्रीगुरुपर्वक्रमः (संस्कृत)-महावैयाकरण श्रीगुणरत्नसूरि ने "क्रियारत्नसमुच्चय" नामक ग्रन्थ वि० सं० १४६६ में निर्माणित किया था । जो, य. प्र. मा० बनारस से प्रकाशित हुअा है। उसी से यह पहावली उद्धृत की है। प्रन्थकर्ता का परिचय पृ. ६५ में है। (५) गुवांवली-पट्टपरंपरामूरिनामानि (संस्कृत)-युगप्रधान श्रीमुनिसन्दरमरि रचिन यह ग्रन्थ य० प्र० मा० बनास से प्रकाशित हुआ है। उसके ११. पद्यमय दन्द में से केवल पपरंपरा के प्राचार्यों के नाम मात्र ही फेरिस्त के रूप में यहां दिये गये हैं। रचनाकाल वि० सं० १४६६ है। ग्रन्थकर्ता का परिचय पृष्ट ६६ में दिया है। (E) मेमनीभाग्य-पट्टावली (संस्कृत)--मुनि प्रतिष्ठासोमने श्रीसोमसन्दरसरि के चरित्र रूप "सोमनौभाग्य" कान की वि० सं० १५२४ में रचना की। जो जे. ज्ञ.. प्र. मं० बंबई से भाव युक्त मुद्रित हो चुका है। उसी के तीसरे सर्ग से यह पावलं ली गई है । ग्रन्यकर्ता को प्रशस्ति पृ. ४० में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002624
Book TitlePattavali Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay, Gyanvijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size11 MB
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