________________ राष्ट्रसन्त मुनिश्री नगराजजी डी. लिट. सरदारशहर, (राजस्थान), 24 सितम्बर, 1917 / प्रव्रज्या: तेरापंथ के अष्टमाचार्य पूज्य कालूगणी के कर-कमलों से सन् 1934 / उपाधियाँ: अणुव्रत परामर्शक पद सन् 1962 / * ऑनरेरी डी. लिट. : कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा सन् 1969 / * राष्ट्रसन्त : सन् 1981 कलकत्ता में / . सद्भावनारत्न : राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा सन् 1984 / * योग शिरोमणि : अन्तर्राष्ट्रीय योग सम्मेलन में, 3 अगस्त 1986 / * ब्रह्मर्षि : विश्वधर्म संसद् आदि संस्थाओं द्वारा अगस्त 1986 / * साहित्य मनीषी : अन्तरष्ट्रिीय ज्योतिष सम्मेलन, 26 मई 1987 / * जैन धर्म दिवाकर : इन्टरनेशनल जैन एवार्ड संस्था द्वारा सन् 1988 / साहित्य-साधना : आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, खण्ड 1, 2, 3, अहिंसा-विवेक, जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान, आचार्य भिक्ष और महात्मा गांधी, नैतिक विज्ञान, नया युग : नया दर्शन, यथार्थ के परिपार्श्व में आदि पच्चास से अधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी में प्रकाशित / बहुसंख्यक स्फुट लेख व विचार जो देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते ही रहे है। लोक हिताय : सुदूर प्रान्तों में प्रलम्ब व सफल पद-यात्राए / मजदूरों और किसानों में, विद्यार्थियों और व्यापारियों में, सर्व साधारण और राजकर्मचारियों में, स्नातको व प्राध्यापकों में, अधिवक्ताओं व न्यायाधीशों में, साहित्यकारों व पत्रकारों में, विधायकों व संसद सदस्यों में, नैतिक व चारित्रिक उद्बोधन / दिल्ली आपका प्रमुख कार्य-क्षेत्र रही है / शीर्षस्थ लोगों से आपका उल्लेखनीय सामीप्य रहा है / कॉन्सैप्ट पब्लिशिंग कम्पनी ए/15-16 मोहन गार्डन, नई दिल्ली-110059 फोन : 5554042, 3272187