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७६८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
(खण्ड : ३ सत्य पारमिता-जिस प्रकार शुक्र तारा किसी भी ऋतु में अपने मार्ग का अतिक्रमण नहीं
करता. उसी प्रकार सौ-सौ संकट आने पर व धन आदि का प्रलोभन होने पर भी सत्य
से विचलित न होना। सन्निपात-गोष्ठी। सब्रह्मचारी--गुरु-भाई । एक शासन में प्रवजित श्रमण । समाधि-एक ही आलम्बन पर मन और मानसिक व्यापारों को समान रूप से तथा सम्यक ___ रूप से नियोजित करना। चित्त शुद्धि । समाधि-भावना--जिसे भावित करने पर इसी जन्म में बोधि प्राप्त होती है । सम्बोधि-बुद्धत्व । सम्यक् सम्बुद्ध-प्रवेदित-बुद्ध द्वारा जाना गया। सर्वार्थक महामात्य-निजी सचिव । सल्लेख वृत्ति-त्याग वृत्ति। भगवान् द्वारा बताये हुए भी निमित्त, अवभास, परिकथा की
विज्ञाप्तियों को नहीं करते हुए अल्पेच्छता आदि गुणों के ही सहारे जान जाने का समय आने पर भी अवभास आदि के बिना मिले हुए प्रत्ययों का प्रतिसेवन करता है, यह परम सल्लेख वृत्ति है ।
निमित्ति कहते हैं- शयनासन के लिए भूमि ठीक-ठाक आदि करने वाले को भन्ते, क्या किया जा रहा है ? कौन करवा रहा है ?" गृहस्थों द्वारा कहने पर "कोई नहीं" उत्तर देना अथवा जो कुछ दूसरा भी इस प्रकार का निमित्त करना ।
अवभास कहते हैं “उपासको, तुम लोग कहाँ रहते हो ?" "प्रासाद में भन्ते !" “किन्तु उपासको ? भिक्षु लोगों को प्रासाद नहीं चाहिए?" इस प्रकार कहना अथवा जो कुछ दूसरा भी ऐसा अवभास करना ।
परिकथा कहते हैं "भिक्षु संघ के लिए शयनासन की दिक्कत है।" कहना, या जो दूसरी भी इस तरह की पर्याय कथा है । सहम्पति ब्रह्मा-एक महाब्रह्मा जिसके निवेदन पर बुद्ध ने धर्म का प्रवर्तन किया । अनेको
प्रसंगों पर सहम्पति ब्रह्मा ने बुद्ध के दर्शन किये थे। काश्यप बुद्ध के समय में वह सहक नाम का भिक्षु था और श्रद्धा आदि पाँच इन्द्रियों की साधना से ब्रह्मलोक में महाब्रह्मा
के रूप में उत्पन्न हुआ। सांदृष्टिक-दृष्टि (संदृष्ट) अर्थात् दर्शन, संदृष्ट के योग्य सांदृष्टिक है। लोकात्तर धर्म
दिखाई देते हुए ही संसार-चक्र के भव को रोकता है। इसलिए वह सांदृष्टिक कहलाता
सु-आख्यात -अच्छी तरह से कहा गया। सुनिमित-निर्माण रति देव-भवन के देव-पुत्र । सु-प्रवेदित-अच्छी तरह से साक्षात्कार किया गया।
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