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७६० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खिन्ड :३ द्रोण-पानाज नापने के लिए प्राचीन काल में प्रयुक्त माप। यह नाली से बड़ा होता है।
४ प्रस्थ = १ कुडवा और ४ कुडवा =१ द्रोण होता है ।' एक प्रस्थ गरीब पाव भर माना
गया है; अतः एक द्रोण करीब ४ सेर के बराबर होना चाहिए। धर्म-धर्म और दर्शन के बारे में भिन्न-भिन्न स्थानों पर, भिन्न-भिन्न लोगों को भिन्न-भिन्न
परिस्थितियों में बुद्ध द्वारा दिये गए उपदेश । इन्हें सूत्र भी कहा जाता है। धर्म कथिक-धर्मोपदेशक । धर्मचक्र-प्रवर्तन-भगवान बुद्ध ने पंचवर्गीय भिक्षुओं को जो सर्वप्रथम उपदेश दिया था, वह
धर्मचक्र प्रवर्तन सूत्र कहा जाता है। धर्म चक्षु-धर्म ज्ञान । धर्मता--विशेषता। धर्मधातु-मन का विषय । धर्म पर्याय-उपदेश । धर्म-विनय-मत । धारणा - अनुश्रावण के अनन्तर संघ को मौन देख कर कहना-“संघ को स्वीकार है; अतः
__ मौन है, मैं ऐसा अवधारण करता हूँ।" धुतवादी-त्यागमय रहन-सहन वाला। धुत होता है, धोये क्लेश वाला व्यक्ति अथवा क्लेशों
को धुनने वाला धर्म । जो धुतांग से अपने क्लेशों को धुन डालता है और दूसरों को धुतांग के लिए उपदेश करता है, वह धुत और धुतवादी कहलाता है । धुतांग १३ हैं : १. पांशुकलिकाङ्ग-सड़क, श्मशान कूड़ा, करकट के ढेरों और जहाँ कहीं भी धूल
(पांशु) के ऊपर पड़े हुए चिथड़ों से बने चीवरों को पहिन ने की प्रतिज्ञा। २. चीवरिकाङ्ग-केवल तीन चीवर-संघाटी, उत्तरासंग और अन्तरवासक को
धारण करने की प्रतिज्ञा। ३. पिण्डपातिकाङ्ग-भिक्षा से ही जीविका करने की प्रतिज्ञा। ४. सापदान चारिकाङ्ग-बीच में घर छोड़े बिना एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक
भिक्षा करने की प्रतिज्ञा। ५. एकास निकाङ्ग- एक ही बार भोजन करने की प्रतिज्ञा । ६. पात्रपिण्डकाङ्ग--- दूसरे पात्र का इन्कार कर केवल एक ही पात्र में पड़ा पिण्ड ग्रहण
करने की प्रतिज्ञा।
१. आचार्य हेमचन्द्र , अभिधान , चिन्तामणि कोश, ३।५५० । २. A. P. Budphadatt Mahathera, Concise, Pali-English Dictionary. _pp. 154-170.
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