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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] परिशिष्ट-१ : जैन पारिभाषिक शब्द-कोश ७४५
कायोत्सर्ग किया जाता है। भगवान् महावीर ने इसे ही किया था, ऐसा उल्लेख मिलता है । दूसरी विधि के अनुसार लघु और महा दो भेद होते हैं। १-लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा- अंकों की स्थापना का वह प्रकार जिसमें सब ओर से
समान योग आता है, उसे सर्वतोभद्र कहा जाता है। इस तप का उपवास से आरम्भ होता है और क्रमश: बढ़ते हुए द्वादश भक्त तक पहुँच जाता है। दूसरे क्रम में मध्य के अंक को आदि अंक मान कर चला जाता है और पांच खण्डों में उसे पूरा किया जाता है । आगे यही क्रम चलता है । एक परिपाटी का कालमान ३ महीने १० दिन है। चार परिपाटियाँ होती हैं। इसका क्रम यन्त्र के अनुसार चलता है।
लघुसर्वतोभद्र प्रतिमा
२. महा सर्वतोभद्र प्रतिमा-इस तप का आरम्भ उपवास से होता है और क्रमशः बढ़ते हुए षोडश भक्त तक पहुँच जाता है। बढ़ने का इसका क्रम भी सर्वतोभद्र की तरह ही है । अन्त र केवल इतना ही है कि लघु में उत्कृष्ट तप द्वादश भक्त है और इसमें षोडश भक्त । एक परिपाटी का कालमान १ वर्ष १ महीना और १० दिन है । चार परिपाटियाँ होती हैं । इसका क्रम यन्त्र के अनुसार चलता है।
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