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________________ तत्व : आचार : कथानुयोग] परिशिष्ट-१ : जैन पारिभाषिक शब्द-कोश ७४३ श्रीदेवी-चक्रवर्ती की अग्रमहिषी। कद में चक्रवर्ती से केवल चार अंगुल छोटी होती है। एवं सदा नवयौवना रहती है। इसके स्पर्शमात्र से रोगोपशान्ति हो जाती है। इसके सन्तान नहीं होती। श्रुत ज्ञान-शब्द, संकेत आदि द्रव्य श्रुत के अनुसार दूसरों को समझाने में सक्षम मति ज्ञान । भूत भक्ति-श्रद्धावनत श्रुत ज्ञान का अनवद्य प्रसार व उसके प्रति होने वाली जन-अरुचि __ को दूर करना। श्लेष्मौषध लब्धि-तपस्या-विशेष से प्राप्त होने वाली एक दिव्य शक्ति । इसके अनुसार तपस्वी का श्लेष्म यदि कोढी के शरीर पर भी मला जाये तो उसका कोढ़ समाप्त हो जाता है और शरीर स्वर्ण-वर्ण हो जाता है। षट् आवश्यक-सम्यग ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना के लिए आत्मा द्वारा करने योग्य क्रिया को षट् आवश्यक कहा जाता है । वे छह हैं : १. सामायक-समभाव से रहना, सब के साथ आत्मतुल्य व्यवहार करना। २. चतुर्विशस्त व-चौबीस तीर्थङ्करों के गुणों का भक्तिपूर्वक उत्कीर्तन करना। ३. वन्दना--मन, वचन और शरीर का वह प्रशस्त व्यापार, जिसके द्वारा पूज्यजनों के प्रति भक्ति और बहुमान प्रकट किया जाता है। ४. प्रतिक्रमण-प्रमादवश शुभ योग से अशुभ योग की ओर प्रवृत्त हो जाने पर पुन: शुभ योग की ओर अग्रसर होना। इसी प्रकार अशुभ योग से निवृत्त होकर उत्तरोत्तर शुभ योग की ओर प्रवृत्त होना । संक्षेप में - अपने दोषों की आलोचना। ५. कायोत्सर्ग-एकाग्र होकर शरीर की ममता का त्याग करना। ६. प्रत्याख्यान -किसी एक अवधि के लिए पदार्थ-विशेष का त्याग । संक्रमण-सजातीय प्रकृतियों का परस्पर में परिवर्तन । संघ–गण समुदाय—दो से अधिक आचार्यों के शिष्य-समूह । संज्ञी गर्भ-मनुष्य-गर्भावास । आजीविकों का एक पारिभाषिक शब्द । संथारा-अन्तिम समय में आहार आदि का परिहार । संभिन्नश्रोत लब्धि-तपस्या-विशेष से प्राप्त होने वाली एक दिव्य शक्ति । इसके अनुसार किसी एक ही इन्द्रिय से पाँचों ही इन्द्रियों के विषयों को युगपत् ग्रहण किया जा सकता है। चक्रवर्ती की सेना के कोलाहल में शंख, भेरी आदि विभिन्न वाद्यों के शोर-गुल में भी सभी ध्वनियों को पृथक्-पृथक् पहचाना जा सकता है। संयूथ निकाय-अनन्त जीवों का समुदाय । आजीविकों का एक पारिभाषिक शब्द। संलेखना-शारीरिक तथा मानसिक एकाग्रता से कषायादि का शमन करते हुए तपस्या करना। संवर-कर्म ग्रहण करने वाले आत्म-परिणामों का निरोध । संस्थान-आकार विशेष । संहनन-शरीर की अस्थियों का दृढ़ बन्धन, शारीरिक बल । सचेलक-वस्त्र-सहित । बहुमूल्य वस्त्र-सहित। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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