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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
मैंने संशय किया, यह बहुत बड़ा पाप मुझसे बन पड़ा। मैं अपने दुष्कृत्य की निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ।" यों कहकर स्वर्णकार भरत को प्रणाम कर अपने घर लौट गया।'
बौद्ध परम्परा जनपद-कल्याणी
एक समय का प्रसंग है, भगवान् तथागत सुम्भ नामक जनपद के अन्तर्गत सुम्भों के सेदक नामक नगर में विराजित थे।
उन्होंने भिक्षुओं को अपने पास बुलाया और उनसे कहा-"भिक्षुओ ! यदि जनपद कल्याणी-परम रूपवती वेश्या कहीं आती है तो उसके आने की बात सुनते ही उसे देखने हेतु लोगों की भारी भीड़ लग जाती है । भिक्षुओ ! जनपद-कल्याणी का नृत्य तथा संगीत इतना मनोरम एवं आकर्षक होता है, जब वह नृत्य करने लगती है, गीत गाने लगती है तो उसका नृत्य देखने हेतु, गीत सुनने हेतु लोगों के समूह टूट पड़ते हैं।
"नृत्य एवं संगीत से आकृष्ट होकर एक पुरुष वहाँ आता है। जैसे हर कोई होता है, वह जिजीविष है-जीवित रहने की इच्छा लिये है-जीना चाहता है, मरने की इच्छा नहीं करता, जागतिक सुखों का भोग करना चाहता है तथा अपने को दुःखों से बचाये रखना चाहता है।
''अत्यधिक रुचि एवं उत्सुकता के साथ जनपद-कल्याणी का नृत्य देखने तथा संगीत सुनने में तन्मय बने उस पुरुष से कहा जाए--पुरुष ! यह ऊपर तक तैल से पूरी तरह भरा कटौरा है। इसे उठाओ! इसलिए तम्हें जनपद-कल्याणी और लोगों की भीड़ के मध्य से निकलना है, आगे बढ़ना है। तुम्हारे पीछे एक खड्गधारी पुरुष चलेगा । जहाँ पात्र से जरा भी तैल छलका, नीचे गिरा, वहीं पर तत्क्षण वह खड्गधारी तुम्हारा मस्तक धड़ से अलग कर देगा, काट गिरायेगा।
“भिक्षुओ ! क्या तुम समझते हो, वह पुरुष थोड़ी भी लापरवाही कर तैल-पात्र से जरा भी तैल नीचे छलकने देगा, गिरने देगा?"
भिक्षु बोले-"नहीं भन्ते ! वह जरा भी तैल बाहर नहीं छलकने देगा।"
भगवान ने कहा-"यह उपमा-दृष्टान्त तुम लोगों को समझाने के लिए है । तैल से ऊपर तक भरा पात्र कायगता स्मृति का प्रतीक है । भिक्षुओ ! अतएव तुममें से प्रत्येक को सदा यह सोचते, ध्यान रखते रहना चाहिए कि मैं कायगता स्मृति से अनुभावित हूंगा, उसका अभ्यास करूंगा, उसे स्वायत्त करूंगा, उसे साधूंगा, उसका अनुष्ठान करूंगा, उनका भलीभाँति परिचय करूंगा, उसे सम्यक् रूप में क्रियाशील बनाऊँगा।
"भिक्षुओ ! तुमको इसे हृदयंगम करना चाहिए।"
१. आधार-(क) उदाहरण माला, खण्ड १ (श्री जवाहिराचार्य) (ख) जैन कथामाला भाग १८, पृष्ठ ५५-५६ (ग) ऋषभदेव : एक परिशीलन, पृष्ठ २१५-१८
(घ) जैन इतिहास की प्राचीन कथाएँ पृष्ठ ३१. २. संयुत्त निकाय, दूसरा भाग, जनपद सुत्त ४५.२.१०.
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